अवैध मानव व्यापार आजकल एक वेश्विक उधोग का रूप ले चूका है और इसमें अर्थव्यवस्था के कई अन्य क्षेत्र भी शामिल है, जिनके कारण परम्परागत रूप से स्वीकार्य यौन शोषण के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के शोषण होते है, हालांकि अवैध व्यापार की गई अधिकांश महिलाए एवं लङकिया अभी भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे यौन उधोग में ही लगाई जाती है।
मानव दुर्व्यापार के प्रकार निम्न लिखित है; जो की इस प्रकार है;-
1.यौन शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार,
2.श्रम शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार,
3.चिकित्सा शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार,
4.मनोरंजन एवं खेलों के लिये मानव दुर्व्यापार,
5.बाल सैनिको के लिये मानव दुर्व्यापार ।
1.यौन शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार
यौन शोषण के लिये किया जाने वाला अवैध मानव व्यापार कुल अवैध मानव व्यापार के आधे से अधिक है और यह मुख्यतः वेश्यावृति,बाल यौन शोषण और अश्लील फिल्में बनाने के लिये किया जाता है।यह एक मांग आधारित उधोग है। वस्तुतः अवैध मानव व्यापार करने वाले लोगो ने खुलासा किया है की वे वेश्यागामियो की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये दिल्ली और मुम्बई से लेकर राजस्थान और उत्तरप्रदेश के कालीन उधोगो में काम करने वाले युवा चुस्त लड़को की मांग पर एसी लड़कियां उपलब्ध कराते है जिनमे गोरी,कुवारी युवा और आकर्षक लड़किया शामिल होती है। भारत के राष्टीय मानव अधिकार आयोग(N.H.R.C) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अवैध मानव व्यापार करने वाले 82.5 प्रतिशत लोगो ने यह कहा है कि मांग पर महिलाएँ, बच्चे उपलब्ध कराते है।भारत में,हाल ही के वर्षो में उभरी "चौकाने वाले प्रवृतियों" में से कुच्छेक धार्मिक नगरो/ शहरों में वेश्यावृति, यौन पर्यटन के माध्यम से शोषण और बाल यौन शोषण है। हालाँकि , असग्रहित आंकड़े प्राप्त करना काफी कठिन है, फिर भी आम राय यह है कि अवैध मानव व्यापार किए जाने वाले व्यक्तियो में अधिकांश महिलाएँ और बच्चे ही होते है। तथापि,पुरुषो और युवा लड़को का भी अवैध मानव व्यापार किया जाता है। इसके अतिरिक्त अब यौन शोषण के लिए विशेष रूप से कम से कम आयु के बच्चों का अवैध मानव व्यापार होने लगा है। यौन शोषण के लिए अवैध मानव व्यापार का निकट सम्बंध ऐसे अपराध तंत्र से है जिसमे नशीली दवाए और हथियार ,कार चोरिया, डकैतियां,अवैध अप्रवासियों को अवैध रूप से रखना,भ्रष्टाचार,अप्रवासन सबंधी,अपराध,नकली वीजा एवं पासपोर्ट तैयार करना और मनी लॉन्ड्रिंग शामिल है । प्राप्त जानकारी के अनुसार नशीली दवाओ के तस्कर वेश्यावृति के लिये महिलाओ का अवैध व्यापार नहीं करते परन्तु वे उन्हें नशीली दवाओ के कारोबार में धकेल देते है और उनका उपयोग नशीली दवाओ को लाने ले जाने और उन्हें प्रयोग करने में करते है।
यौन शोषण के लिए मानव दुर्व्यापार का वर्गीकरण निम्नलिखित है,जो की इस प्रकार है;-
i.वेश्यावृत्ति,
ii.यौन पर्यटन,
iii.अश्लील फिल्मांकन,
iv.विवाह ।
i.वेश्यावृत्ति:- वेश्यावृत्ति, व्यापारिक यौन शोषण का सबसे अधिक प्रचलित रूप है। यह विभिन्न रूपो में घटित होती है, जो की इस प्रकार है:-
➤वेश्यालय , वे स्थान है, जिनकी स्थापना विशेष रूप से वेश्यावृत्ति के लिए की जाती है।
➤गलियो की वेश्यावृत्ति में खरीदार, महिलाओ और लड़कियो को गली के एक सिरे पर या गली के किनारे चलते-चलते साथ ले लेता है। भारत में कोलकाता नगर इस बात के लिए प्रसिद्ध है।
➤कुछेक मसाज पॉरलरो और नाई की दुकानों, जो कि यौन गतिविधियों, शोषण के गढ़ है, में भी वेश्यावृत्ति होती है।
➤यहाँ तक कि खुले बारो में भी वेश्यावृत्ति की जाती है। विश्वभर में थाईलैंड ऐसे खुले बारो के लिए मशहूर है
➤एस्कॉर्ट अथवा आउट-कॉल वेश्यावृत्ति।
आधुनिक दिनों की दासता के अधिकांश मामलो में किसी महिला को अवैध मानव व्यापार के जरिए वेश्यावृत्ति में ऋण बंधुआ के रूप में रखा जाता है वह अपने शोषण द्वारा वेश्यालय अथवा दलाल के लिए जो भी कमाती है उस कमाई का एक भाग उसे दे दिया जाता है। अवैध मानव व्यापार के इन आम तरीको जैसे जबरदस्ती, बल प्रयोग और बल प्रयोग की धमकी देकर अथवा उनके या उनके परिवार के सदस्यों के प्रति हिंसा द्वारा किए जाने वाले एकपक्षीय प्रबंधो का शिकार प्रायः महिलाएँ एवं बच्चे ही होते है। वेश्यावृति में धकेलि गई महिलाओ के मामले में विशेष रूप से अधिकांशतः लड़कियो को ही वेश्यावृति में धकेला जाता है। भारत में वेश्यावृति में प्रवेश की औसतन आयु 9 से 13 वर्ष के बीच है।
भारत में, कोलकाता के सोनागाछी,मुम्बई के कामतीपुरा और दिल्ली के जी.बी.रोड के वेश्यालयों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी वेश्यावृति, चौकाने वाली प्रवृतियों में से एक बन गई है, जिसमें अवैध व्यापार की गई महिलाओ की बेटियो को वेश्यावृति में धकेल दिया जाता है जो अपनी बूढ़ी हो रही माताओ का स्थान लेती हैं। बंगलादेशी और नेपाली लड़कियो, महिलाओ और बच्चों को अवैध व्यापार के जरिए पाकिस्तान और मध्य यूरोप के रास्ते भारत लाया जाता है अथवा भारत से भेजा जाता है। भारत के केन्द्रीय जाँच ब्यूरो का अनुमान है कि वेश्यावृति में लगे बच्चों की संख्या अकेले भारत में ही कम से कम 1.3 मिलियन है। यूरोप, सयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशो के यौन पर्यटकों के लिए भारत एक उभरता हुआ गन्तव्य स्थान है।
हालांकि, अजनबियो द्वारा कुछेक बच्चों का अपहरण वेश्यावृति के लिए किया जाता है, किंतु अधिकाश बच्चे अपने जानकारों द्वारा ही वेश्यावृति में धकेले जाते है। भारत में नटो ,बेडियाओ, देवदासियों और जोगिनो की प्रथाए अद्वितीय है। प्रायः समाज के अत्यंत वंचित वर्ग से संबंध रखने वाली महिलाओ और लड़कियो का शोषण होता है और वे वेश्यावृति के लिए उपलब्ध होती है। भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से लगभग 50 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियो से 12 से 27 प्रतिशत महिलाएँ एवं लड़किया वेश्यावृति में संलिप्त है।
ii.यौन पर्यटन:- पर्यटन उधोग के विकास ने बच्चों के यौन शोषण, जो कि प्रायः असहनीय रूप में होता है , को बढ़ाने में योगदान दिया है। यौन पर्यटन, अथवा यौन संबंध बनाने के प्रयोजनार्थ किए जाने वाले पर्यटन ने पर्यटन बाजार की मुख्य धारा में अपना स्थान बना लिया है। यह पर्यटन ऐसी स्थितिया उत्पन्न करता है जो आसानी से भोग विलास कीं सुविधा प्रदान करती है। मेजबान देश द्वारा पहचान गुप्त रखने की पेशकश का लाभ , दमनकारी कारकों को न्यूनतम कर देता है। कानून प्रवर्तन के ढ़ीले-ढाले रवैये के कारण दक्षिण एशियाई देशो को प्राथमिकता दी जा रही है। यौन पर्यटन में ट्रेवल एंजेसी, टूर ऑपरेटर्स, होटल और पर्यटन उधोग की अन्य संस्थापनाए शामिल है, कुछ कंपनिया तो बाल वेश्याओ की उपलब्धता का प्रचार खुले आम करती है। यौन पर्यटन में बाल वेश्या को प्रमुख ग्राहकगण माना जाता है। भारत में राजस्थान, गोआ, उड़ीसा , केरल और तमिलनाडु राज्यो में यौन पर्यटन प्रचलित है। गोआ राज्य को यौन पर्यटन के लिए सबसे आकर्षक स्थान माना जाता है जबकि मुम्बई को "भारत में बाल वेश्याओ के व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र कहा जाता है।"
iii.अश्लील फिल्मांकन:- भारत में अश्लील फिल्मांकन विशेषकर बच्चों जिनके अवैध व्यापार का दायरा अपेक्षाक्रत बड़ा है, को शामिल करके किया जाने वाला अश्लील फिल्मांकन चिंता का विषय है। वीडियो कैमरों के माध्यम से बच्चों के अश्लील चित्र तैयार किए जाते है। इंटरनेट के माध्यम से इन चित्रो को देखा जाता है और इससे भी अधिक, अब इन्हे मोबाइल फोनो पर भी देखा जा सकता है। इंटरनेट द्वारा,न्यूज़ ग्रुप, चैट रूम, ई-मेल्स, ब्लॉग्स एवं वेबसाइट का प्रयोग करने वाले बाल यौन प्रेमियो की पहचान को गुप्त रखा जाता है। इंटरनेट द्वारा उपलब्ध सामग्री का व्यापक प्रचार संभव हो गया है और इस तक पहुँचना अपेक्षाकृत सरल और सस्ता हो गया है। इस प्रौधोगिकी ने वाणिज्यिक क्रेताओं, यौन पर्यटको, बाल यौन दुर्व्यव्हार और हिंसा की सुविधा भी प्रदान कर दी है। इसके संबंध सीमापार के अनेक कार्यकर्ताओ से है और प्रत्यक्ष रूप में यह पर्यटन से सम्बन्धित है। उदाहरणार्थ, हो सकता है कि एक देश में तो अश्लील सामग्री तैयार करने के लिए किसी दूसरे देश के बच्चों का प्रयोग किया जा रहा हो तथा इस प्रकार अंततः तैयार की गई अश्लील सामग्री को किसी तीसरे देश में प्रयोग में लाया जा रहा हो। अश्लील फिल्माकंन के यौन कृत्यों में भाग लेने के लिए बच्चों को बहकाया जाता है, उनके साथ जबरदस्ती की जाती है। अश्लील चित्र/ सामग्री, किसी बच्चे को बनाए बिना, उसके यौन शोषण की प्रक्रिया के दौरान तैयार की जाती है। उसके बाद इन चित्रो को किसी क़ीमत पर बेचा जाता है अथवा स्वैच्छिक विनिमय के रूप में उसका व्यापार किया जाता है। बच्चों की अश्लील फिल्में देखने वाले लोग इन बच्चों का निरंतर शोषण करते रहते है जिसके परिणामस्वरूप वे बच्चे इस दुश्चक्र से कभी नहीं निकल पाते।
सन् 1996 में गोआ के फ्रेडी पीट्स मामले (फ्रेडी पीट्स बनाम भारत,1996,1992 का सत्र मामला संख्या 24) में सबसे पहले बच्चों के साथ दुर्व्यव्हार और अश्लील फिल्माकंन के प्रति जनता में जागरूकता उत्पन्न की गई। फ्रेडी पीट्स जो कि अज्ञात मूल का एक विदेशी था ; को भारत में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यव्हार का दोषी पाया गया, वह एक अनाथालय की आड़ में बच्चों के 2305 अश्लील फ़ोटो,135 नेगेटिव स्ट्रिप्स के साथ-साथ दवाएँ और मनः प्रभावी पदार्थ बरामद किए गए। भारत में संगठित बाल यौन अपराध चलाने की यह पहली दोष सिद्धि थी।
iv.विवाह :- विवाह के लिए अवैध व्यापार एक अंतर्देशीय और अंतरा-देशीय अवधारणा है। इस अवैध व्यापार को चुनौती देना इसलिए कठिन है क्योकि विवाह का कोई औपचारिक रूप नहीं है। प्रायः गरीब परिवारो की युवा लड़कियो से विवाह करके उन्हें दूसरे राज्य अथवा देश में ले जाया जाता है। भुवनेश्वर के अधिकार नामक एक मानव अधिकार समूह द्वारा यह पता लगाया गया है कि दुल्हन की कीमत का भुगतान करके, उड़ीसा के नया गढ़ जिले से अनेक लड़कियो को दुल्हन के रूप में ले जाया जाता है, और फिर उनका विवाह झाँसी में युवा पुरुषो के साथ कर दिया जाता है। इस समूह ने उनमे से कुछ को तो बचा लिया लेकिन अनेको लड़कियो का अभी तक भी कोई अता-पता नही है।
इन कारवाइयो में अनेक दलाल और एजेंट संलिप्त है। वे अभिभावको को पैसा अथवा महगे उपहार जैसे भौतिक लालच देकर और उनके बच्चों के लिए बेहतर जीवन के सपने दिखाकर उन्हें अपनी लड़कियो का विवाह करने के लिए मनाते है। पीड़ितो को अपने जाल में फसाने के लिए इन दलालो और एजेंटो द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ अन्य तरीको में मित्रता करना,प्यार की घोषणा करना और झूठा विवाह करना शामिल है। कई बार महिलाओ और जवान लड़कियो को फ़साने के लिए काफी मात्रा में पैसा देने , अधिक संपन्न देशो में अच्छी नोकरी और आवास दिलाने का वचन भी दिया जाता है। उदाहरणार्थ , जवान लड़कियो से विवाह करने के इच्छुक विदेशी उपयुक्त दुल्हन की तलाश करने के लिए बिचोलियों से संपर्क करते है।ऐसे व्यक्तियो के लिए हैदराबाद एक नियमित गंतव्य स्थान बन गया है। अरब राष्ट्रिको के एजेंट सवेंदनशील परिवारो की सुंदर लड़कियो का पता लगाने के लिए शहर भर में घूमते है। विवाह हो जाने के उपरांत अभिभावको को दूल्हे केपूर्ववृत्त और एजेट की विश्वसनीयता की जांच करने का समय दिए बिना ही लड़की को घर से ले जाया जाता है। कुछ समय उपरांत , अरब राष्र्टिक लड़की को छोड़ देता है और वह दलालो की दया पर निर्भर हो जाती है। तब दलाल उस लड़की को मुम्बई,पुणे और गोआ इत्यादि के वेश्यालयों में बेच देते है। तथापि, चूँकि पीड़िता के अभिभावक कानून और अपने अधिकारो के प्रति अनजान होते है, अतः पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने यदा-कदा ही जाते है।
वाशिंगटन टाइम्स की एक रिपोर्ट, दासता के लिए बनी दुल्हनें में यह उद्घाटित किया गया है कि बंगलादेश की गरीब लड़किया विवाह के प्रयोजनार्थ अवैध व्यापार द्वारा हरियाणा में लाई जा रही है ताकि राज्य में जनसांख्यिकीय असंतुलन को ठीक किया जा सके,इसके साथ ही इन्हे घरेलु नौकर के रूप में दिल्ली ,पटना और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भी भेजा जा रहा है।
अवैध व्यापार करने वाले , महिलाओ और युवा लड़कियों की संवेदनशीलता का फायदा उठाते है ताकि शोषण के लिए उन्हें बंधक बनाया जा सके रिश्तेदार और संरक्षक, जो अविवाहित लड़की को अपने परिवार पर एक बोझ मानते है को संभावित पीड़ित के साथ भविष्य में क्या होने जा रहा है के बारे में पता होता है या कई बार उनसे छिपाया जाता है, को प्रायः भौतिक लालच दिया जाता है। दास बनाने के लिए अवैध व्यापार की गई महिलाओ और युवा लड़कियो के मामलो में अपहरण बहलाना-फुसलाना और बलात्कार शामिल होता है किन्तु ऐसे मामले बहुत कम है।
2.श्रम शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O) के अनुमान के अनुसार, अवैध मानव व्यापार का दूसरा प्रमुख रूप शोषणात्मक अथवा सस्ते श्रम के लिए अवैध मानव व्यापार(18 प्रतिशत) है। भारत में श्रम के अवैध व्यापार का प्रमुख कारण खेतो और निर्माण स्थलो तथा घरेलू कार्यो के लिए बंधुआ मजदुर उपलब्ध करना है। सस्ते श्रम की मांग के कारण छोटी फैकिट्रया जैसे ईट के भट्टे , खदाने और शीशा पीसने के स्थान आदि अवैध व्यापार का प्रथम बिंदु बनने जा रहे है, भारत मध्य-पूर्व और इराक तथा अफगानिस्तान के ठेकेदारों के लिए सस्ते अकुशल श्रम का बहुत बढ़ा आपूर्तिकर्ता बन चूका है।
N.H.R.C द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अधिकांश अवैध व्यापारियो ने यह बताया कि उन्होंने अवैध व्यापार करने से पूर्व तत्पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मांग वाले क्षेत्रों का पता लगाया। अवैध व्यापार करने वालो ने आसान आपूर्ति अथवा स्रोत क्षेत्रों की भी पहचान की। भारत के सम्बन्ध में कटु सत्य यह है कि भारत आसान स्रोत क्षेत्र बन चूका है। सभी श्रम और उपभोक्ता बाजार सामाजिक और राजनीतिक रूप से इस प्रकार तैयार किए गए है कि लोगो द्वारा खरीदी जाने वाली और बेचीं जाने वाली वस्तुओ का निर्धारण बहुत हद तक ढांचागत और सैध्दांतिक कारको के एक जटिल समूह द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्र इस बात का निर्धारण करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि क्या और किसके द्वारा तथा किन शर्तों पर क्या खरीदा गया और क्यों बेचा गया। दूसरे शब्दों में, "अवैध व्यापार के मांग पक्ष" का पता लगाने का अर्थ केवल अवैध व्यापार द्वारा लाए गए व्यक्तियो के श्रम, सेवाओ का शोषण अथवा उपभोग करने वाले व्यक्ति के बारे में पूछताछ करना ही नहीं है, अपितु उस तरीके का पता लगाना भी है जिसके द्वारा राष्ट्र में, कार्रवाई और प्रतिक्रिया के संयोग द्वारा ऐसी परिस्थतियों का निर्माण हुआ जिनके अंतर्गत ऐसे श्रम/सेवाओ का उपभोग अथवा शोषण करना संभव अथवा लाभकारी हो सका। भारत में यह "कार्रवाईया और प्रतिक्रियाएँ" उच्च वर्गीय भू-स्वामियों द्वारा बंधुआ मजदूरी के प्रयोग को स्थानीय प्राधिकारियों की मौन स्वीकृति या निम्न वर्गीय समुदायो की लड़कियो से बार-बार होने वाले बलात्कारों को नजरअंदाज करने से लेकर लिंग-भेद के प्रति निष्क्रिय सरकार द्वारा वित्त पोषित H.I.V एड्स प्रबंधन परियोजनाओं के सक्रिय प्रचार तक फैली हुई है। ऐसी परियोजनाओं में दलालों और वेश्यालयों के प्रबंधको कंडोम वितरण के प्रयोजनार्थ "भद्र शिक्षको" के रूप में रखा जाता है, जिससे अवैध व्यापार करने वालो के रूप में उनकी जाँच एवं अभियोजन में कठनाई आती है जबकि वे "किसी के द्वारा यौन क्रिया के लिए बेचे जाने वाले शारीर की कमाई पर अपना जीवनयापन करते है" और इस प्रकार कानून को तोड़ते है।
शोषणात्मक और सस्ता श्रम आमतौर पर श्रम आधारित और/अथवा अनियमित उधोगो में पाया जाता है,जैसे कि;
➤कृषि एवं मछली पालन,
➤घरेलू कार्य,
➤निर्माण,खनन,खदान और ईट भट्टे,
➤उत्पादन प्रक्रमण एवं पैकेजिंग,
➤मार्केटिंग ट्रेडिंग एवं अवैध गतिविधिया,
➤भीख माँगना,
➤बाल मजदूरी, विशेषकर खानपान, कपड़ा और कालीन उधोग में ।
शोषणात्मक अथवा सस्ते श्रम की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब अनैतिक कार्य करने वाला नियोक्ता संवेदनशील कामगारों का शोषण करने के लिए विधि प्रवर्तन की खामियों का लाभ उठता है। ये कामगार,अत्यधिक बेरोजगारी,गरीबी,अपराध,भेदभाव, भ्रष्टाचार,राजनितिक मतभेद और प्रथाओ की संस्कृतिक स्वीकार्यता के कारण शोषणात्मक श्रम प्रक्रियाओ के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाते है। अप्रवासी विशेष रूप से संवेदनशील होते है,परन्तु श्रम के मामले में व्यक्तियो का अपने ही देश में भी शोषण होता है।
भारतीय पुरुषो, महिलाओ और बच्चों का श्रम के लिए अवैध व्यापार देश और विदेश दोनों जगहों पर होता है, जिसमे एशियाई, मध्य पूर्व और पश्चिमी देशो में अनैच्छिक घरेलू दासत्व और अरब की खाड़ी में निर्माण कार्य के लिए भारतीय पुरुषो का अवैध व्यापार शामिल है। भारत में मजदूरी के लिए अन्य देशो के लोगो का अवैध व्यापार भी किया जाता है। प्रायः नेपाल और बंगलादेश से महिलाओ और लड़कियो का अवैध व्यापार होता है जिन्हें विभिन्न प्रकार की अनैच्छिक घरेलू सेवाओ में लगाया जाता है। श्रम के विभिन्न रूपो का वर्णन नीचे दिया गया है, जो की इस प्रकार है;-
i.बंधुआ मजदूर,
ii.बाल मजदूर,
iii.घरेलू दासत्व,
iv.भिक्षावृत्ति ।
i.बंधुआ मजदूर:- किसी बंध-पत्र का प्रयोग या ऋण किसी व्यक्ति को पराधीनता में रखना आदि बल या जबरदस्ती का ही एक अन्य रूप है। भारत के बंधुआ मजदूरी प्रथा (निवारण) अधिनियम , 1976 में इसे "बंधुआ मजदुर" अथवा "ऋण बंधुआ" की संज्ञा दी गई है। इसे संयुक्त राष्ट्र नयाचार में अवैध व्यापार से सम्बंधित शोषण के रूप में शामिल किया गया है। जब अवैध व्यापार करने वाले अथवा भर्ती करने वाले व्यक्ति,ऋणी कामगारों को अपने रोजगार के निबंधनों का एक भाग मानते हुए उनका विधि- विरुद्ध शोषण करते है तो विश्वभर में कामगार उस समय ऋण बंधुआ के रूप में पीड़ित हो जाते है। बंधुआ मजदूरी की परम्परागत प्रणाली में कामगारों को ऋण विरासत में मिलता है। उदाहरणार्थ, भारत में परम्परागत बंधुआ मजदूरी प्रथा में अनेक लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी दासता भोग रहे है। हालाँकि , बंधुआ मजदूरी अपने परम्परागत रूप में कृषि क्षेत्र में अभी भी बड़े पैमाने पर पाई जाती है, किन्तु यह अन्य क्षेत्रों जैसे घरेलु सेवाओ,ईट भट्टो, चमड़ा उधोग, निर्माण स्थलो,चावल मिलो,खनन एवं खदानों, शीशा बनाने, ताले बनाने और कालीन बुनने जैसे उधोगो में भी तेज़ी से बढ़ रही है। बंधुआ मजदूरो की अधिकांश संख्या नीची जाति के स्तर ग्रामीण लोगो अथवा अन्य अल्पसंख्यक समूहों से संबंध रखती है। पीड़ित के अभिभावकों अथवा संरक्षकों को दिए गए ऋण अथवा अन्य सुविधाओ वास्तविक या काल्पनिक के भुगतान के रूप में बच्चों, महिलाओ एवं पुरुषो को दुर्व्यव्हार करने वालो को सौप दिया जाता है। भारत में बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओ के कारण अवैध व्यापार का यह रूप कई गुणा बढ़ गया है।पीड़ित व्यक्ति दासो की तरह काम करते रहते है और उन्हें यह कभी भी पता नहीं चलता कि अंततः कब ऋण चूका हुआ माना जाएगा।
अध्ययनों से प्रकट होता है कि अवैध व्यापार के अधिकांश पीड़ित ,धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक और दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों की अनाधिसूचित आपराधिक जनजातियो सहित कमजोर अनुसूचित जातियो और अनुसूचित जनजातिय समुदायो से होते है। उच्चतम न्यायालय द्वारा 1985 की रिट याचिका (सिविल, संख्या 3922) में दिनाँक 11 नवम्बर 1997 को दिए गए निर्दशो के अनुसरण में N.H.R.C द्वारा देश के विभिन्न भागो में बंधुआ मजदूर अधिनियम के कार्यान्वयन पर नजर रखी जा रही है।
ii.बाल मजदूर:- श्रम के अवैध व्यापार का एक अन्य शोषणात्मक रूप बाल मजदूरी है। भारत में महिलाओ एवं बच्चों के अवैध व्यापार पर N.H.R.C द्वारा किया गया एक कार्य अनुसंधान इस तथ्य का साक्ष्य है कि वंचित बच्चे किस प्रकार- अपर्याप्त पारितोषिक के लिए अत्यंत कष्टप्रद और शोषणात्मक परिस्थितियो के घंटो तक कार्य करते है। वस्तुतः कई सवैधानिक प्रावधानों और इस विषय पर 1948 से 1986 के बीच पारित किए गए अनेक अधिनियमो के बावजूद भी बाल मजदूरी का डिकन्स संसार भारत के लगभग सभी राज्यो और संध शासित क्षेत्र प्रशासनों में तेज़ी से फैल रहा है। इसने 6 I.L.O अभिसमयो, जिनमे भारत एक पक्षकार है और बच्चों के अधिकार पर अभिसमय जिसमे भी भारत एक पक्षकार है प्रावधानों को ललकारा है। सविधान कानून और संधि की प्रतिबद्धताओं के बावजूद भी इस स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव लाने की असमर्थता गहरी पेंठ बनाई हुई सामाजिक और आर्थिक समस्याओ का समाधान करते समय ऐसे साधनो की परिमितताओ को दर्शाती है, इसके लिए वास्तव में व्यापक और व्यवहार्य उपाय किए जाने चाहिए।
iii.घरेलू दासत्व:- घरेलू दासत्व , शोषणात्मक मजदूरी का एक विचित्र रूप है। चूँकि इसका कार्यस्थल एक निजी स्थान होता है, इसलिए दूसरो पर किए जाने वाले दुर्व्यहार का साक्ष्यबध्द अथवा दस्तावेजबध्द नही किया जा सकता। इसमें समय पर पूरा नियंत्रण होता है क्योंकि इसमे 'कार्य की समाप्ति पर अलग क्वार्टर में रहने की व्यवस्था' नही होती। चूँकि प्राधिकारी निजी सम्पतियों का निरक्षण उतनी आसानी से नही कर पाते है जितनी आसानी से वे औपचारिक कार्यस्थलों का निरीक्षण करते है इसलिए ऐसा वातावरण शोषण के अनुकूल होता है। भारत में, अवैध भर्ती एजेंसियों के माध्यम से घरेलू दासत्व का धंधा बड़े पैमाने पर चल रहा है, जो, झारखंड, सुंदरवन, आंध्रप्रदेश, बिहार, उड़ीसा और प्राकृतिक आपदाओ, त्रासदियों से प्रभावित अन्य राज्यो से शोषण योग्य मजदूरो को उपलब्ध करवाती है।
दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे कम विकसित देशो से विदेशी अप्रवासियों, विशेषकर महिलाओ, को खाड़ी के देशो मलेशिया, सिंगापूर,ताईवान,यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अधिक विकसित देशो में घरेलू कार्य करने के लिए भर्ती किया जाता है। परन्तु इनमे से अधिक स्थान घरेलू नौकरो को वैसा विधिक संरक्षण उपलब्ध नही कराते जैसा कि वे अन्य क्षेत्रों में विदेशी कामगारों को उपलब्ध कराते है।
जब घरेलू नौकर किसी घर में अनैच्छिक संवेदनशीलता को देखते हुए एक कठोर विधि प्रवर्तन और पीड़ित संरक्षण की आवश्यकता होती है। वे घरेलू नौकर जो दुर्व्यवहार करने वाले नियोक्ता कोछोड़कर जाने का विकल्प चुनते है उन्हें कभी-कभी "भगोड़ा" कहा जाता है और अपराधी के रूप में देखा जाता है हालाँकि, उन्हें अवैध व्यापार के संभावित पीड़ित के रूप में देखा जाना चाहिए।
iv.भिक्षावृत्ति :- नाबालिगों को भीख मांगने के कार्य में लगा कर उनका शोषण करना अवैध मानव व्यापार का एक ऐसा अन्य रूप है जिसने सक्षम प्राधिकारियों के समक्ष नई चुनौती खड़ी कर दी है। युवा पीड़ितो की पहचान करने हेतु प्रभावी प्रक्रिया विकसित करने और संदिग्ध बाल अवैध व्यापार को सिद्ध करने के लिए केवल जाँच प्राधिकारियों पर ही बल नहीं दिया जाना चाहिए अपितु बाल संरक्षण प्राधिकारियों और अप्रवासन अधिकारियो से भी पीड़ित के लिए पर्याप्त संरक्षण, आवासीय उपाय करते हुए प्रत्यावर्तन तंत्र सहित इस अवधारणा को समाप्त करने के लिए अनुग्रह करना चाहिए।
ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित फिल्म स्लमडॉग मिलिनयर में जबरदस्ती भीख मंगवाने वाले एक गिरोह को दिखाया गया है जिसमें अवैध व्यापार करने वाले बुरे लोग बच्चों को अँधा कर देते है ताकि वे पर्यटको की सहानुभूति प्राप्त करके पैसा बटोर सकें। किन्तु बलात भिक्षावृत्ति, अनेक यूरोपियन यूनियन देशो में भी एक समस्या है जिसमे अवैध व्यापार करने वाले लोग पूर्वी यूरोपियन देशो से घनी पश्चिमी देशो में बच्चों की तस्करी करते है और उन्हें गलियो में भीख मागने पर मजबूर करते है । हेलसिन्की मे रोमानिया और बुल्गारिया से अवैध व्यापार के जरिए लाए गए बच्चों से भीख मांगने का कार्य जबरदस्ती करवाया जाता है।
सन् 1997 में सऊदी अरब के प्राधिकारियों द्वारा अनेक भारतीय मुस्लिम बच्चों को जेद्दा, मक्का और मदीना में भीख मांगते हुए पकड़ा गया था और उन्हें, उनके महावाणिज्यिक दूतावास द्वारा आवश्यक यात्रा दस्तावेज जारी किए जाने के उपरांत समूहों में भारत वापस भेजा गया था। इन बच्चों को इस आधार पर वहाँ ले जाया गया था कि वे मक्का की यात्रा करना चाहते है। इसकी बजाए, उनसे वहा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों से प्रतिदिन जबरदस्ती भीख मंगवाई जाती थी। उनके भारत वापस लौटने पर यह पता चला कि उनमे से अनेक का स्वास्थ्य काफी ख़राब हो चूका था। यह मामला भारत के राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोग के संज्ञान में लाया गया और इस विशिष्ट मामले में पश्चिम बंगाल जहाँ से बच्चों का अवैध व्यापार किया गया था , की सरकार के साथ-साथ भारत सरकार के ग्रह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को बच्चों के संरक्षण के लिए निवारात्मक उपाय करने का सुझाव दिया गया , विशेष रूप से हज यात्रा के दौरान इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही की N.H.R.C द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने अनुरक्षक के पासपोर्ट पर बच्चे का नाम पृष्ठांकित करने की बजाए, अप्रैल 1997 से प्रत्येक बच्चे के संबंध में व्यक्तिगत पासपोर्ट जारी करना आरंभ कर दिया।
भिक्षावृत्ति के उद्देश्य से किए जाने वाले अवैध व्यापार की स्थिति में विकलांग बच्चे अधिक संवेदनशील स्थिति में होते है। इस कार्य के लिए निर्धनता और अक्षमता एक आदर्श संयोग है और ऐसे बच्चों का अवैध व्यापार इस विश्वास से किया जाता है कि अक्षमता के कारण भिक्षा देने वाले में दया उत्पन्न होगी। यह विश्वास, भीख मांगने वाले बच्चे को उसकी आमदनी बढ़ाने के लिए जानबूझ कर आहत अवस्था में रहने के गम्भीर जोखिम में डाल देता है। गली के वे असहाय बच्चे एक अन्य सवेदनसील श्रेणी है, जिनका अपहरण आसनी से किया जा सकता है।
3.चिकित्सा शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार
जो व्यक्ति अंगो को खरीद सकते है, उनके अंगो के प्रतिरोपण के लिए बच्चों सहित व्यक्तियो का अवैध व्यापार , अवैध व्यापार करने वालो के लिए एक "लाभप्रद व्यापार" है।
गुर्दा एक ऐसा अंग है जिसका अवैध व्यापार आमतौर पर होता है। प्रायः लोगो को बुरे आर्थिक हालातों से बचने के लिए अपने अंग बेचने के लिए मजबूर किया जाता है, उनका अपहरण किया जाता है अथवा उनके साथ जबरदस्ती की जाती है। जब "दानकर्ता" को अंगदान करने के लिए मजबूर किया जाता है अथवा जब उसे तयशुदा कीमत नहीं दी जाती तो इसे अंगो का अवैध व्यापार कह सकते है। केवल अंग ही अवैध व्यापार की जाने वाली शारीरिक सामग्री ही नहीं है, मानव तंतुओं सहित मानव के अन्य अंगों का भी व्यापार होता है। ऐसे मामले भी देखने में आए है जिनमे मृत शरीरों से मानव अंगों को निकाल लिया गया और उन्हें संबंधियो की जानकारी और सहमति के बिना बेच दिया गया।
मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम,1994 के पारित होने से पूर्व भारत में अंग व्यापार का एक सफल विधिवत बाजार था। कम लागत और मानव अंगो की उपलब्धता के कारण पुरे विश्व से व्यापार होता था। इसने भारत को विश्व के सबसे बड़े किडनी प्रत्यारोपण केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया था। भारत में अंगो के विधिवत व्यापार की अवधि के दौरान अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई। कुछेक मामलो में, रोगियों को इस बात का पता ही नहीं चलता था कि उनकी किडनी प्रत्यारोपित कर दी गई है। अन्य समस्याओं में यह समस्या शामिल थी कि रोगियो को जो राशि से कही अधिक होती थी। दान से सम्बंधित नैतिक मुद्दों के कारण भारत सरकार को अंगो की बिक्री को प्रतिबंधित करने के लिए एक विधायन पारित करना पड़ा।
मार्च 2008 में अंगो की बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने तक, फिलीपीन्स में अंगो की बिक्री वैध थी। चीन में अंगो की खरीद प्रायः मृत्युदंड प्राप्त कैदियों से की जाती है। ह्यूमन राईटस वॉच के एक अनुसंधानकर्ता निकोलस बैकलिन द्वारा यह अनुमान लगाया गया कि चीन से आने वाले 90 प्रतिशत अंग मृतक कैदियों के है। चीन उदार कानून के बावजूद अभी भी प्रत्यारोपण के लिए अंगो की कमी से जूझ रहा है। चीन की सरकार ने शेष विश्व द्वारा गंभीर छानबीन किए जाने के उपरांत अंगो की वैध बिक्री को समाप्त करने के लिए विधायन पारित किया। तथापि विधमान में ऐसा कोई विधायन नहीं है जो ऐसे मृतक कैदियों जिन्होंने मृत्युदंड दिए जाने से पूर्व अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हो, के अंगों को एकत्र करने को निषिद्ध करता हो।
इरान में लाभ के लिए किडनी बेचना वैध है, विधमान में इरान में किडनी प्रत्यारोपण के लिए कोई प्रतीक्षा सूची नहीं है। किडनी की बिक्री वैध और विनियमित है। दि चैरिटी एसोसिएशन फॉर दि स्पोर्ट ऑफ़ किडनी पेशेन्टस (C.A.S.K.P) और दि चैरिटी फाउंडेशन फॉर स्पेशल डिसीजेज ( C.F.S.D) द्वारा सरकार के सहयोग से अंगो के व्यापार को नियंत्रित किया जाता है। ये संगठन दानकर्ता और प्राप्तकर्ता को मिलाते है और सुसंगतता सुनिश्चित करने के लिए जाँच करते है। इरान में दानकर्ता को दी जाने वाली राशि भिन्न-भिन्न है किन्तु यह औसतन 3000 डॉलर से 5000 डॉलर तक होती है। कुछेक मामलों में रोजगार की पेशकश भी की जाती है।
4. मनोरंजन एवं खेलों के लिए मानव दुर्व्यापार
इसे निम्नलिखित आधारो पर समझा जा सकता है , जो की निम्नलिखित है;-
i.लैप-डांसिंग,
ii.बीयर बार ,
iii.नौटकी/नाच/ञात्रा ,
iv.खेल यौन-पर्यटन,
v.कैमल जॉकी ।
i.लैप-डांसिंग:- यूरोप, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में फल-फूल रहे लैप-डांसिंग क्लबों और 'गो-गो' बारों ने पैसा देकर यौन क्रिया करने की बढ़ती हुई मांग के लिए आग में घी का काम करने के साथ-साथ अवैध मानव व्यापार के प्रवाह के कारकों को प्रोत्साहित करने का काम किया है।ये लैप-डांसिंग क्लब "यौन क्रिया गतिविधियों के अड्डे" है।
ii.बीयर बार:- भारत,थाईलैंड और कंबोडिया में बीयर बार वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियो के अवैध व्यापार के अग्रणी स्थल बन चुके है। महिला वेटरों और डांसरों को यौन संबंध बनाने के लिए 'झीने परदों' के पीछे ले जाया जाता है और उन्हें बार के मालिकों तथा दलालों द्वारा ऋण बंधुआ प्रणाली के अंतर्गत रखा जाता है।
iii.नौटकी/नाच/ञात्रा :- नृत्य मंडली जिसे उत्तर भारत में नौटकी और पूर्व (बंगाल एवं उड़ीसा) में ञात्रा कहा जाता है, के भाग के रूप में मनोरंजन के लिए बच्चों, विशेषकर युवा लड़कियों का अवैध व्यापार परम्परागत रूप से हो रहा है। शहरो में अब यह 'आधुनिक रूप' ले रहा है, ये युवा लड़किया क्लबों और होटलों में डांस करती है अथवा इन्हे कलाबाजी के करतब दिखाने के लिए सर्कस में ले जाया जाता है। यह देखने में आया है कि नेपाली लड़कियो को काम सिखाने , कमाई करने तथा साथ-साथ पढ़ाई करने का वादा देकर भारतीय सर्कस में काम करने के लिए लालच दिया जाता है। अभिभावक स्वयं ही अपने बच्चों को भारतीय सर्कस के मालिको अथवा सर्कस के एजेंटो को सौप देते है। क्योकि उन्हें इसमे कोई बुराई नजर नही आती है।परन्तु वे दोबारा अपने बच्चों से कभी नही मिल पाते क्योकि सर्कस हमेशा यात्रा करती रहती है और उन्हें यह भी पता नहीं लग पाता कि उनके बच्चों को क्या कष्ट है उत्तर प्रदेश और भारत के यात्रा मेलों में लड़को को नाचने वाले लड़कों के रूप में भेजने के लिए लड़को का अवैध व्यापार किया जाता है।
iv.खेल यौन-पर्यटन:- यूनान में वर्ष 2004 के ग्रीष्म ओलंपिकस के दौरान अवैध मानव व्यापार के पीड़ितो की संख्या में 95 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली। इस अंतरार्ष्ट्रीय खेल समारोह की टीमो में से एक के चिकित्सक ने यह सुचना दी की किस प्रकार कुछेक एथलीटों ने उसे अपनी "ड्यूटी" के रूप में सेक्स उपलब्ध करवाने के लिए कहा ( और उसने मना कर दिया) जर्मनी और अब दक्षिण अफ्रीका में खेले गए विश्वकप के दौरान भी यही सब कुछ घटित हुआ। अक्टूबर में हुए राष्ट्रमंडल खेलो के लिए वेश्यालयों के मालिकों ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रो से दिल्ली में नई लड़कियो का अवैध व्यापार करना प्रारंभ कर दिया । वेंकूवर ने ओलम्पिक्स की तैयारी में एक अभियान आरंभ किया जिसका शीर्षक था "सेक्स की खरीद खेल नही है।"
v.कैमल जॉकी:- कैमल जॉकी के रूप में काम करने के लिए केवल युवा लड़को का ही अवैध व्यापार किया जाता है। वे युवा और ऊंट की पीठ पर बांधे जा सकने योग्य छोटे होने चाहिए। उन्हें दौड़ के दौरान ऊंट की पीठ पर इस प्रकार बांध दिया जाता है ताकि वे डर कर कूद न जाएँ।ऊंटो को एक रास्ते पर दौड़ाया जाता है।ऊंट प्रायः पागल और हिंसक हो जाते है और अपनी पीठ पर बंधे लड़कों को मार डालते है। जो बच्चे नीचे गिर जाते है उनकी जान को मार्ग पर दूसरे ऊंटो द्वारा मारे जाने का खतरा होता है, और यदि वे ऊंटो पर चढ़ने से इंकार करते है तो उन्हें पीटा जाता है और किसी भी प्रकार से ऊंट पर चढ़ाने के लिए उनका शोषण किया जाता है।
5. बाल सैनिको के लिये मानव दुर्व्यापार
बच्चों का सैनिकीकरण व्यक्तियो के अवैध व्यापर का एक अद्वितीय और गंभीर कड़ी है जिसमें प्रायः बच्चों को विवादास्पद क्षेत्रों में श्रम अथवा यौन शोषण के लिए बलपूर्वक,छल-कपट, अथवा जोर-जबरदस्ती द्वारा विधि विरुद्ध तरीके से भर्ती किया जाता है। इस संबंध में सरकारी ताकते अर्धसैनिक संगठन अथवा विद्रोही समूह, अपराधकर्ता हो सकते है। हालांकि विधि विरुद्ध तरीके से भर्ती किए जाने वाले और विद्रोही गतिविधियों में प्रयोग किए जाने वाले बाल सैनिको की आयु 15 और 18 वर्ष के बीच हो सकती है, किंतु इसमे 7 से 8 वर्ष की आयु के बच्चे भी होते है जो कि अंतराष्ट्रीय कानून के तहत भी विधि- विरुद्ध है।