कानूनी नीतिया तथा मानव दुर्व्यापार के संबंध में संस्थागत प्रतिक्रिया


           अभिसमय , नयाचार , घोषणा , दिशानिर्देशों आदि के रूप में बहुत बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजो का  जमावड़ा लगा हुआ है। उनमें से कुछ हमारे लिए बाध्य है क्योंकि हमने उन पर हस्ताक्षर किए हुए है तथा उनका अनुसमर्थन किया हुआ है जिसे कि व्यक्तियो के अवैध व्यापार अन्य लोगों का वेश्यावृत्ति शोषण रोकने संबंधी अभिसमय 1949, संगठित अपराध अभिसमय आदि। तदनुसार भारतीय भूक्षेत्र में अभिसमय को कार्यान्वित करने के लिए हमने अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 संगठित अपराध अधिनियम आदि जैसे विधायन बनाए। इसी प्रकार हमने अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार संबंधी कई दस्तावेजो पर हस्ताक्षर  किया तथा उनका अनुसमर्थन किया जैसे कि सिविल एवं राजनीतिक अधिकार संबंधी अभिसमय (I.C.C.P.R) बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय (C.R.R) आदि। इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दस्तावेज को कार्यान्वित करने के लिए हमने विधान भी लागू किए। कुछ अन्य अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज भी है जिन पर हमने हस्ताक्षर तो किए है लेकिन उनका अनुसमर्थन नही किया है जैसे कि संगठित अपराध अभिसमय संबंधी वैकल्पिक नयाचार महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव के उन्मूलन सम्बंधी अभिसमय जैसे मानव अधिकार दस्तावेज आदि।
           अंतर्राष्ट्रीय विधिक पद्धति के अन्तगर्त आने वाले  वे अभिसमय आते है जो की मानव दुर्व्यापार के विरुद्ध किये गए है ,वह निम्नलिखित है;-
(1.) पारदेशीय संगठित अपराध(2000) अभिसमय को संवर्धित करते हुए अवैध मानव व्यापार, विशेषतः महिलाओं तथा बच्चों के अवैध व्यापार को रोकने दबाने तथा दंडित करने के लिए नयाचार,
(2.) अवैध मानव व्यापार तथा अन्य का वेश्यावृत्ति शोषण रोकने के लिए अभिसमय 1949 ,
(3.) बच्चों के अधिकार संबंधी अभिसमय 1989 ,
(4.) मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 1948 ,
(5.) बलात् श्रम संबंधी अभिसमय संख्या 29 ,
(6.) दासत्व अभिसमय 1927 ,
(7.) बालश्रम पर प्रतिबंध तथा इसके निकृष्ट स्वरूपों के प्रति तत्काल कार्रवाई 1999 के संबंध में अभिसमय संख्या 182 ,
(8.) नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय 1966 ,
(9.) आर्थिक , सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय 1966 ,
(10.) अधिकार एवं पर्यटन संहिता संबंधी पर्यटन विधेयक 1985 ,
(11.) पारदेशीय संगठित अपराध के खिलाफ सयुंक्त राष्ट्र अभिसमय 2000 के अनुपूरक के रूप में भूमि जल तथा वायु द्वारा प्रवासियों की तस्करी के खिलाफ नयाचार ,
(12.) महिलाओं के प्रति हर प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन संबंधी अभिसमय 1979 ,
(13.) सभी प्रवासी मजदूरों तथा उनके परिवार के सदस्यों के अधिकारी के संरक्षण संबंधी अभिसमय 1990 ,
(14.) मानव अधिकारों तथा अवैध मानव व्यापार के संबंध में U.N.O.H.C.H.R द्वारा संस्तुत सिद्धांत एवं दिशानिर्देश ।

भारतीय विधि के संदर्भ में मानव दुर्व्यापार 

           यधपि किसी कानून विशेष में अवैध मानव व्यापार की परिभाषा नहीं दी गई है फिर भी अवैध मानव व्यापार की परिभाषा नहीं दी गई है फिर भी अवैध मानव व्यापार संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए कानूनों की भरमार है। व्यापारिक यौन शोषण के लिए किए जाने वाले अवैध मानव व्यापार को रोकने के लिए भारत में वर्ष 1956 में स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन अधिनियम 1956 लागू किया गया। स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन संशोधन अधिनियम 1986 की धारा 3 द्वारा वर्ष 1987 से अधिनियम की शब्दावली में परिवर्तन किया गया। आज इसे अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के नाम से जाना जाता है तथा यह भारत में अवैध मानव व्यापार के संबंध में मुख्य सांविधि है। भारत ने पारदेशीय संगठित अपराध अभिसमय को संवर्धित करते हुए अवैध मानव व्यापार, विशेषतः महिलाओं तथा बच्चों के अवैध व्यापार को रोकने, दबाने तथा दंडित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र नयाचार पर भी हस्ताक्षर किए हुए है। मजदूरों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए भी हमारे पास विभिन्न सविधिया है।जो की इस प्रकार है;-
(1.) भारत का संविधान,
(2.) अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 ,
(3.) भारतीय दंड संहिता 1860 ,
(4.) दंड प्रक्रिया संहिता 1973 ,
(5.) भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 ,
(6.) किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 ,
(7.) बालश्रम (निषेधाज्ञा एवं विनियमन) अधिनियम 1986 ,
(8.) बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम 1976 ,
(9.) सूंचना प्रौधोगिकी अधिनियम 2000 ,
(10.) मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम 1994 ,
(11.) दांडिक कानून संशोधन अध्यादेश 1944 ,
(12.) प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ओफ़्फ़ेन्सस एक्ट (पॉस्को) 2012 .
1. भारत का संविधान :- भारत के संविधान में अवैध मानव व्यापार स्पष्ट  या अंतनिहित रूप से प्रतिबंधित है । अनुच्छेद 14 में समानता का प्रावधान है। अनुच्छेद 15 में धर्म मूलवंश जाति , लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध अनुच्छेद 15(3) में महिलाओं और बच्चों के विशेष संरक्षण हेतु प्रावधान है, यह कहता है कि "इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नही करेगी।" अनुच्छेद 16(1) में लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता का प्रावधान है। अनुच्छेद 23 में अवैध मानव व्यापर तथा बलात् श्रम का प्रतिबंध है। अनुच्छेद 24 में बच्चों को कारखानों में या खदानों में या उनकी आयु के लिए अनुपयुक्त जोखिम भरे कार्यो में नियोजन प्रतिषेध है। अनुच्छेद 38 के अनुसार राज्य को एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए जिसमें सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित किया जा सके। यह सामान्यतः समान परिणाम के लिए अवसर उपलब्ध कराने के लिए कहता है। अनुच्छेद 39 में प्रावधान है कि राज्य अपनी नीतियों का संचालन इस प्रकार करेगा कि अन्य बातो के साथ-साथ पुरुष और महिला को उनकी आयु एवं शक्ति के अनुकूल समान रूप से जीविका के साधन समान कार्य के लिए समान वेतन सुनिश्चित करेगा । अनुच्छेद 39(च ) में प्रावधान है कि बच्चों को स्वतंत्र एवं गरिमापूर्ण वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाए दी जाए और उनके बचपन के शोषण से रक्षा की जाए। अनुच्छेद 42 अमानवीय परिस्थितियों में कार्य के खिलाफ संरक्षण उपलब्ध कराता है। अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए निः शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रावधान है जिसे अनुच्छेद 21(क) में बच्चों के मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया गया है। अनुच्छेद 46 राज्य को महिलाओं तथा कमजोर वर्गों के शैक्षणिक एवं आर्थिक हितों के संवर्धन का तथा उन्हें सामाजिक अन्याय तथा हर प्रकार के शोषण से संरक्षित रखने का निर्देश देता है।
2. अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956:- I.T.P.A1956 का मुख्य प्रयोजन आजीविका के रूप में वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं एवं लड़कियों के अवैध व्यापार को समाप्त करना है। इस अधिनियम के तहत आने वाले अपराध निम्नानुसार है;-
     ➤वेश्यालय चलाना या किसी परिसर को वेश्यालय के रूप में प्रयोग की अनुमति देना ।(धारा 3)
     ➤वेश्यावृत्ति से होने वाली आय पर जीवनयापन करना।(धारा 3)
     ➤वेश्यावृत्ति के लिए व्यक्तियों को उपलब्ध करना, उकसाना आदि। (धारा 5)
     ➤किसी व्यक्ति को ऐसे परिसर में नजरबंद करना जहां वेश्यावृत्ति की जाती हो।(धारा 6)
     ➤सार्वजनिक स्थल पर या उसके नजदीक वेश्यावृत्ति करना।(धारा 7)
     ➤वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से किसी को बहकाना या तैयार करना।(धारा 8)
     ➤अभिरक्षा में किस व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करना।(धारा 9)
3. भारतीय दंड संहिता 1860:- भारतीय दंड सहिंता में विविध प्रावधान है जो अवैध व्यापार किए गए व्यक्ति के विभिन्न उल्लखित अधिकारों जो परिणामतः विभिन्न दांडिक अपराध बन जाते है, से संबंधित प्रावधान है , धारा 293 ,धारा 294 , धारा 317 , धारा 341 , धारा 342 , धारा 354 , धारा 363 , धारा 363क , धारा 365 , धारा 366क , धारा 366ख , धारा 370 , धारा 371 , धारा 372 , धारा 373 , धारा 375 , धारा 498 , धारा 509 , एवं धारा 511 के अंतर्गत आते है।
4. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 :-   इस संदर्भ में प्रासंगिक धारा 51(2) , धारा 53(2) , धारा 98 , धारा 160 , धारा 327 (2) , तथा धारा 357.
5. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 :-   इस संदर्भ में धारा 114क तथा धारा 151 प्रासंगिक है।
6. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 :-   इस अधिनियम का उद्देश्य बालको एवं किशोरों को सुरक्षा दिलवाना है। यह भटके किशोरों की सहायता प्रदान करते है की वह एक अच्छे व्यक्ति बन सके। इसमें असहाय , अनाथ , व पथभ्रष्ट बालक आ जाते है।
7. बालश्रम (निषेधाज्ञा एवं विनियमन) अधिनियम 1986 :-   इस अधिनियम की एक अनुसूची के भाग-क में दिए गए विशिष्ट पेशों , कार्यों में बच्चों को नियोजित करना निषिद्ध है। अधिनियम में बच्चों के कार्य की परिस्थितियां दी गई है।
8. बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम 1976 :-   इस अधिनियम में अग्रिम , समझौता , आरोहत या अवरोहत , बंधत्व ऋण , बंधुआ मजदूरी प्रथा की परिभाषा दी गई है तथा यथोचित कार्रवाई करने का प्रावधान है।
9. सूंचना प्रौधोगिकी अधिनियम 2000 :-   यह पुरे भारत में लागू है तथा इसे अपरदेशीय क्षेत्राधिकार भी प्राप्त हैं। इस अधिनियम की धारा 67 किसी भी ऐसी सामग्री जो कामुक हो या कामी हितों को आकर्षित करती हो, या उसका प्रभाव ऐसा हो जो उसे पड़ने देखने या सुनने वाले को सभी संगत परिस्थितियों में संभवतः भ्रष्ट कर दे या उसके चरित्र को नष्ट कर दे, के इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशन या प्रसारण को दंडनीय मानती है।
10. मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम 1994 :-   इस अधिनियम के दो उद्देश्य निम्नानुसार है;-
➤उपचारात्मक प्रयोजनों के लिए मानव अंगो को निकलने उन्हें सहेजकर रखने तथा प्रतिरोपण के लिए विनियम उपलब्ध कराना।
➤मानव अंगों से संबंधित होने वाले व्यापार को रोकना इस अधिनियम में मानव अंगो को निकलने उन्हें सहेज कर रखने तथा प्रतिरोपण के कार्य में लिप्त अस्पतालों के विनियमन तथा पंजीकरण का भी प्रावधान है।
11. दांडिक कानून संशोधन अध्यादेश 1944 :-  इस अधिनियम में कोई भी अनुसूचित अपराध कारित करने की स्थिति में संपति कुर्क करने का प्रावधान है।
12. प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम  ओफ़्फ़ेन्सस एक्ट (पॉस्को) 2012 :-  पॉस्को, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) का संक्षिप्त नाम है।पॉस्को एक्ट-2012 के अंतर्गत बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पोक्सो एक्ट-2012 बनाया था।वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है, पास्को अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है, इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. इस एक्ट को बनाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं और आसानी से लोगों के बहकाबे में आ जाते हैं. कई बार तो बच्चे डर के कारण उनके साथ हुए शोषण को माता पिता को बताते भी नही है। traffickingजो लोग यौन प्रयोजनों के लिए बच्चों का व्यापार (child trafficking) करते हैं उनके लिए भी सख्त सजा का प्रावधान है।

मानव दुर्व्यापार से संबंधित वाद 


           प्रमुख वाद इस प्रकार है,जो की निम्नलिखित है;-

              गौरव जैन बनाम भारत संघ (1997) 8 S.C.C 114 A.I.R 1997 S.C. 3021 के वाद में उच्चत्तम न्यायालय ने निर्णय दिया कि वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं के बच्चों को भी अपने ऊपर बिना किसी कलंक के सामाजिक जीवन की मुख्य धारा के एक भाग के रूप में अवसरों की समानता , गरिमा , देखभाल , संरक्षण तथा पुनर्वास का अधिकार है। न्यायालय ने ऐसे बच्चों तथा बाल वेश्याओं के पुनर्वास हेतु एक समिति गठित करने तथा इसकी रजिस्ट्री के कार्यान्वयन तथा आवधिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

            विशालजीत बनाम भारत संघ एवं अन्य A.I.R. 1990 S.C. 1412 सेक्स वर्कर्स तथा उनके बच्चों के लिए कल्याणकारी एवं पुनर्वास योजनाओं की मॉनीटरिंग एवं मूल्यांकन हेतु यथोचित समितियों का गठन करने के लिए केंद्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए। तथापि ऐसे सभी मामलों जिनमें पुलिस कार्मिकों ने अवैध व्यापार करने वालों दलालों तथा वेश्यालय चलाने वालों की मदद की है, में C.B.I. को राष्ट्रव्यापी जाँच करने के निर्देश देना व्यवहार्य नहीं है।

            रामू बनाम राज्य 1995 C.R.L.J 2525 मद्रास असहाय तथा भोली-भाली अवयस्क लड़कियों को वेश्यावृत्ति में घसीटने वाले आरोपी व्यक्ति पर या तो महिलाओं का अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 5(ग) के तहत या फिर भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत अभियोजन चलाया जा सकता है या दंडित किया जा सकता है। सामान्य खंड अधिनियम की धारा 26 के अनुसार जब कोई कार्य दो या उससे अधिक विधायनो के तहत् अपराध माना जाता है तो अपराध करने वाले पर दोनों में से किसी भी विधायन के तहत अभियोजन चलाया जा सकता है और ऐसा अभियोजक के विवेक पर निर्भर करता है।

          कुमारी संगीता बनाम राज्य एवं अन्य 1995 (101) C.R.L.J. 3923 दिल्ली अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम धारा 17 (5) न्यायाधिकरणों का गठन तथा संरचना -"सकता है" शब्दों का अर्थ "किया जाना चाहिए" समझना चाहिए और मजिस्ट्रेट के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वह अधिनियम की धारा 17 (2) के तहत् अपने दायित्वों का निर्वाह करते समय पांच गणमान्य व्यक्तियों के एक पैनल की सहायता ले।

           प्रेमा देवी तथा प्रेमा चौधराईन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1997 (103) C.R.L.J.3572 अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम की धारा 3 एवं धारा 5 के तहत् वेश्यालय चलाने तथा अवयस्क लड़कियों को वेश्यावृत्ति करने के लिए बाध्य करने वाली आरोपी महिला को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के तहत् या अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा 10 के तहत् कोई लाभ नहीं दिया जाना चाहिए चाहे वो जमानत पर बाहर हो और काफी लंबी अवधि तक कारावास में रही हो।

          निर्मला रानी बनाम तमिलनाडु राज्य 2003 (109) C.R.L.J. 3108 मद्रास अवैध व्यापार करने वालों तथा पुलिस के बीच के आपराधिक गठजोड़ का खुलासा करने का प्रयास करने वाली प्रार्थी घृणा, उपेक्षा तथा पुलिस की दुर्भावना ग्रसित जाँच का शिकार बनी उसे बड़ी मात्रा में हर्जाना दिया गया क्योकि राज्य तथा उसके अंगो ने उसे अनावश्यक मानसिक यातना दी तथा उसके मौलिक अधिकारों का हनन किया।

            नीरजा चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1984) 3 S.C.C. 243 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है की बांडेड लेबर सिस्टम (एबालिशन) एक्ट,1976 के अधीन सरकार का कर्तव्य केवल बंधुआ श्रमिकों को मुक्त करना ही नही वरन उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था करना भी है जिसके आभाव में वे फिर शोषण के शिकार हो सकते हैं। उक्त अधिनियम का कार्यान्वयन न करना अनुछेद 23 का सरासर उल्लंधन है।

            बंधुआ मुक्तिमोर्चा बनाम भारत संघ A.I.R.1984 S.C.802 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब न्यायालय में लोकहित वाद के माध्यम से यह आरोप लगाया जाता है कि किसी स्थान पर बंधुआ मजदुर है तो राज्य को इसका स्वागत करना चाहिये क्योकि इससे सरकार को यह जाँच करने का कि क्या श्रमिकों से बलतश्रम लिया जा रहा है और साथ उसे कैसे समाप्त किया जा सकता है दोनों के लिए अवसर मिलता है । अनुछेद 23 के अधीन सरकार का यह एक सांविधानिक कर्त्तव्य है। अनुछेद 23 ने बंधुआ मजदुर प्रणाली को समाप्त कर दिया है। इसी उद्देश्य से संसद ने बंधुआ मजदुर प्रणाली उन्मूलन अधिनियम ,1976 पारित किया है।

          बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ (2011) 5 SCC के मामले में बचपन बचाओ आंदोलन की बड़ी पहल बचपन बचाओ आंदोलन के भुवन नामक कार्यकर्ता ने जनवरी 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा काम दिलाने के नाम पर बच्चों और औरतों की तस्करी पर रोक लगाने की मांग की।तब यह बात उजागर हुई कि सरकार ने ऐसी एजेंसियों पर अंकुश रखने के लिए कोई कानून ही नहीं बनाया है।इस मामले के उजागर होने के बाद प्लेसमेंट कंपनियों के लिए श्रम विभाग के अधीन पंजीयन कराने की व्यवस्था बनी।इस पूरी कार्रवाई में करीब दो साल का समय लगा। जिसके बाद इस वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह आदेश दिया गया की मानव दुर्व्यापार को रोकने के कानून का निर्माण किया जाए। एवं मानव दुर्व्यापार से मुक्त कराए गए बच्चों को सहायता व सूरक्षा प्रदान की जाए।

           पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ A.I.R.1982 S.C.1473 के प्रसिद्ध मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 23 के क्षेत्र को पर्याप्त विस्तृत कर दिया है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि 'बेगार' से तात्पर्य ऐसे काम या सेवाओं से है जिसे किसी व्यक्ति से बलपूर्वक बलातश्रम बिना पारिश्रमिक दिये लिया जाता है। अनुच्छेद 23 केवल 'बेगार' को ही नहीं, बल्कि इसी प्रकार के सभी 'बलपूर्वक' लिए जाने वाले कार्य को भी वर्जित करता है; क्योकि इससे मानव की प्रतिष्ठा एवं गरिमा पर आघात पहुँचता है। अनुच्छेद 23 प्रत्येक प्रकार के 'बलातश्रम' को वर्जित करता है और यह इन दोनों में कोई अंतर नहीं करता कि बलातश्रम के लिए पारिश्रमिक दिया गया है अथवा नही। यदि किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा के विरुद्ध या दबाव से कार्य करना पड़ता है तो भले ही उसे पारिश्रमिक मिला हो, वह अनुच्छेद 23 के अधीन 'बलातश्रम' माना जायेगा। 'बलातश्रम' कई तरीके से लिया जा सकता है। इसमें शारीरिक दबाव, विधिक दबाव जहाँ किसी विधि के अधीन न कार्य करने पर दण्ड का उपबन्ध होता है। इस तक ही सीमित नहीं है बल्कि आर्थिक कठिनाइयों से उत्पन्न दबाव भी शामिल है, जहाँ उसे कम पारिश्रमिक में कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। अनुच्छेद 23 के विस्तृत निर्वचन में ऐसे श्रम भी आते है। प्रस्तुत मामले में एशियाड प्रोजेक्ट में लगे श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी 9.25 रुपये में से जमादार ने प्रति श्रमिक 1 रुपया अपना कमीशन काटकर केवल 8.25 रूपये ही दिया था जिसके परिणामस्वरूप उन्हें न्यूनतम मजदूरी नहीं मिली थी। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिधारित किया कि यह अनुच्छेद 23 का सरासर उल्लंघन था और सम्बंधित प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि ठेकेदारों से वह धन वापस लेकर श्रमिकों को दिलायें और उनके विरुद्ध समुचित कार्यवाही करें। अनुच्छेद 23 और 24 न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 के अधीन नागरिकों के मूल अधिकारों के उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध समुचित कार्यवाही करना राज्य का एक सविधानिक कर्त्तव्य है।

People's Union for Democratic Rights vs. Union of India A.I.R.1982 S.C.1473 ( पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ A.I.R.1982 S.C.1473)


           पीपुल्स यूनियन फार डेमोक्रेटिक राइट्स बनाम भारत संघ A.I.R.1982 S.C.1473   के प्रसिद्ध मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 23 के क्षेत्र को पर्याप्त विस्तृत कर दिया है। न्यायालय ने निर्णय दिया कि 'बेगार' से तात्पर्य ऐसे काम या सेवाओं से है जिसे किसी व्यक्ति से बलपूर्वक बलातश्रम बिना पारिश्रमिक दिये लिया जाता है। अनुच्छेद 23 केवल 'बेगार' को ही नहीं, बल्कि इसी प्रकार के सभी 'बलपूर्वक' लिए जाने वाले कार्य को भी वर्जित करता है; क्योकि इससे मानव की प्रतिष्ठा एवं गरिमा पर आघात पहुँचता है। अनुच्छेद 23 प्रत्येक प्रकार के 'बलातश्रम' को वर्जित करता है और यह इन दोनों में कोई अंतर नहीं करता कि बलातश्रम के लिए पारिश्रमिक दिया गया है अथवा नही। यदि किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा के विरुद्ध या दबाव से कार्य करना पड़ता है तो भले ही उसे पारिश्रमिक मिला हो, वह अनुच्छेद 23 के अधीन 'बलातश्रम' माना जायेगा। 'बलातश्रम' कई तरीके से लिया जा सकता है। इसमें शारीरिक दबाव, विधिक दबाव जहाँ किसी विधि के अधीन न कार्य करने पर दण्ड का उपबन्ध होता है। इस तक ही सीमित नहीं है बल्कि आर्थिक कठिनाइयों से उत्पन्न दबाव भी शामिल है, जहाँ उसे कम पारिश्रमिक में कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। अनुच्छेद 23 के विस्तृत निर्वचन में ऐसे श्रम भी आते है। प्रस्तुत मामले में एशियाड प्रोजेक्ट में लगे श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी 9.25 रुपये में से जमादार ने प्रति श्रमिक 1 रुपया अपना कमीशन काटकर केवल 8.25 रूपये ही दिया था जिसके परिणामस्वरूप उन्हें न्यूनतम मजदूरी नहीं मिली थी। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिधारित किया कि यह अनुच्छेद 23 का सरासर उल्लंघन था और सम्बंधित प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि ठेकेदारों से वह धन वापस लेकर श्रमिकों को दिलायें और उनके विरुद्ध समुचित कार्यवाही करें। अनुच्छेद 23 और 24 न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 के अधीन नागरिकों के मूल अधिकारों के उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध समुचित कार्यवाही करना राज्य का एक सविधानिक कर्त्तव्य है।

Bachpan bachao andolan vs. union of india(बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ (2011) 5 SCC )


      
        बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ (2011) 5 SCC के मामले में बचपन बचाओ आंदोलन की बड़ी पहल बचपन बचाओ आंदोलन के भुवन नामक कार्यकर्ता ने जनवरी 2009 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर प्लेसमेंट एजेंसियों द्वारा काम दिलाने के नाम पर बच्चों और औरतों की तस्करी पर रोक लगाने की मांग की।तब यह बात उजागर हुई कि सरकार ने ऐसी एजेंसियों पर अंकुश रखने के लिए कोई कानून ही नहीं बनाया है।इस मामले के उजागर होने के बाद प्लेसमेंट कंपनियों के लिए श्रम विभाग के अधीन पंजीयन कराने की व्यवस्था बनी।इस पूरी कार्रवाई में करीब दो साल का समय लगा। जिसके बाद इस वाद में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह आदेश दिया गया की मानव दुर्व्यापार को रोकने के कानून का निर्माण किया जाए। एवं मानव दुर्व्यापार से मुक्त कराए गए बच्चों को सहायता व सूरक्षा प्रदान की जाए।

Bandhua mukti morcha vs. union of india 1984 ( बंधुआ मुक्तिमोर्चा बनाम भारत संघ A.I.R.1984 S.C.802 )

          
            बंधुआ मुक्तिमोर्चा बनाम भारत संघ A.I.R.1984 S.C.802 के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब न्यायालय में लोकहित वाद के माध्यम से यह आरोप लगाया जाता है कि किसी स्थान पर बंधुआ मजदुर है तो राज्य को इसका स्वागत करना चाहिये क्योकि इससे सरकार को यह जाँच करने का कि क्या श्रमिकों से बलतश्रम लिया जा रहा है और साथ उसे कैसे समाप्त किया जा सकता है दोनों के लिए अवसर मिलता है । अनुछेद 23 के अधीन सरकार का यह एक सांविधानिक कर्त्तव्य है। अनुछेद 23 ने बंधुआ मजदुर प्रणाली को समाप्त कर दिया है। इसी उद्देश्य से संसद ने बंधुआ मजदुर प्रणाली उन्मूलन अधिनियम ,1976 पारित किया है।

Neerja Chaudhary Vs. State of Madhya Pradesh (1984) 3 S.C.C. 243 ( नीरजा चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1984) 3 S.C.C. 243 )

         
            नीरजा चौधरी बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1984) 3 S.C.C. 243   के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है की बांडेड लेबर सिस्टम (एबालिशन) एक्ट,1976 के अधीन सरकार का कर्तव्य केवल बंधुआ श्रमिकों को मुक्त करना ही नही वरन उनके पुनर्वास की उचित व्यवस्था करना भी है जिसके आभाव में वे फिर शोषण के शिकार हो सकते हैं। उक्त अधिनियम का कार्यान्वयन न करना अनुछेद 23 का सरासर उल्लंधन है।

Nirmala Rani Vs. Tamil Nadu State 2003 (109) C.R.L.J. 3108 Madras (निर्मला रानी बनाम तमिलनाडु राज्य 2003 (109) C.R.L.J. 3108 मद्रास)


       
            निर्मला रानी बनाम तमिलनाडु राज्य 2003 (109) C.R.L.J. 3108 मद्रास अवैध व्यापार करने वालों तथा पुलिस के बीच के आपराधिक गठजोड़ का खुलासा करने का प्रयास करने वाली प्रार्थी घृणा, उपेक्षा तथा पुलिस की दुर्भावना ग्रसित जाँच का शिकार बनी उसे बड़ी मात्रा में हर्जाना दिया गया क्योकि राज्य तथा उसके अंगो ने उसे अनावश्यक मानसिक यातना दी तथा उसके मौलिक अधिकारों का हनन किया।

Prema Devi and Prema Chaudharain Vs. State of Uttar Pradesh 1997 (103) C.R.L.J.3572 ( प्रेमा देवी तथा प्रेमा चौधराईन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1997 (103) C.R.L.J.3572 )

     
           प्रेमा देवी तथा प्रेमा चौधराईन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 1997 (103) C.R.L.J.3572   अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम की धारा 3 एवं धारा 5 के तहत् वेश्यालय चलाने तथा अवयस्क लड़कियों को वेश्यावृत्ति करने के लिए बाध्य करने वाली आरोपी महिला को अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के तहत् या अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 की धारा 10 के तहत् कोई लाभ नहीं दिया जाना चाहिए चाहे वो जमानत पर बाहर हो और काफी लंबी अवधि तक कारावास में रही हो।

Kumari Sangeeta Vs. State and Other (101) C.R.L.J. 3923 Delhi ( कुमारी संगीता बनाम राज्य एवं अन्य 1995 (101) C.R.L.J. 3923 दिल्ली )

   
       
         कुमारी संगीता बनाम राज्य एवं अन्य 1995 (101) C.R.L.J. 3923 दिल्ली  अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम धारा 17 (5) न्यायाधिकरणों का गठन तथा संरचना -"सकता है" शब्दों का अर्थ "किया जाना चाहिए" समझना चाहिए और मजिस्ट्रेट के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वह अधिनियम की धारा 17 (2) के तहत् अपने दायित्वों का निर्वाह करते समय पांच गणमान्य व्यक्तियों के एक पैनल की सहायता ले।

Ramu vs. State 1995 C.R.L.J. 2525 Madras (रामू बनाम राज्य 1995 C.R.L.J 2525 मद्रास )

           

           रामू बनाम राज्य 1995 C.R.L.J 2525 मद्रास  असहाय तथा भोली-भाली अवयस्क लड़कियों को वेश्यावृत्ति में घसीटने वाले आरोपी व्यक्ति पर या तो महिलाओं का अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 5(ग) के तहत या फिर भारतीय दंड संहिता की धारा 366 के तहत अभियोजन चलाया जा सकता है या दंडित किया जा सकता है। सामान्य खंड अधिनियम की धारा 26 के अनुसार जब कोई कार्य दो या उससे अधिक विधायनो के तहत् अपराध माना जाता है तो अपराध करने वाले पर दोनों में से किसी भी विधायन के तहत अभियोजन चलाया जा सकता है और ऐसा अभियोजक के विवेक पर निर्भर करता है।

Vishal jeet Vs. Union of India and other A.I.R. 1990 S.C. 1412 (विशालजीत बनाम भारत संघ एवं अन्य A.I.R. 1990 S.C. 1412)

 
        
            विशालजीत बनाम भारत संघ एवं अन्य A.I.R. 1990 S.C. 1412 सेक्स वर्कर्स तथा उनके बच्चों के लिए कल्याणकारी एवं पुनर्वास योजनाओं की मॉनीटरिंग एवं मूल्यांकन हेतु यथोचित समितियों का गठन करने के लिए केंद्र सरकार तथा विभिन्न राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए। तथापि ऐसे सभी मामलों जिनमें पुलिस कार्मिकों ने अवैध व्यापार करने वालों दलालों तथा वेश्यालय चलाने वालों की मदद की है, में C.B.I. को राष्ट्रव्यापी जाँच करने के निर्देश देना व्यवहार्य नहीं है।

Gaurav Jain vs. Union of India and Others ( गौरव जैन बनाम भारत संघ (1997) 8 S.C.C 114 A.I.R 1997 S.C. 3021)

          
           गौरव जैन बनाम भारत संघ (1997) 8 S.C.C 114 A.I.R 1997 S.C. 3021 के वाद में उच्चत्तम न्यायालय ने निर्णय दिया कि वेश्यावृत्ति करने वाली महिलाओं के बच्चों को भी अपने ऊपर बिना किसी कलंक के सामाजिक जीवन की मुख्य धारा के एक भाग के रूप में अवसरों की समानता , गरिमा , देखभाल , संरक्षण तथा पुनर्वास का अधिकार है। न्यायालय ने ऐसे बच्चों तथा बाल वेश्याओं के पुनर्वास हेतु एक समिति गठित करने तथा इसकी रजिस्ट्री के कार्यान्वयन तथा आवधिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

Freddie Peters vs India, 1996/फ्रेडी पीट्स बनाम भारत,1996

         
              सन् 1996 में गोआ के फ्रेडी पीट्स मामले (फ्रेडी पीट्स बनाम भारत,1996,1992 का सत्र मामला संख्या 24) में सबसे पहले बच्चों के साथ दुर्व्यव्हार और अश्लील फिल्माकंन के प्रति जनता में जागरूकता उत्पन्न की गई। फ्रेडी पीट्स जो कि अज्ञात मूल का एक विदेशी था ; को भारत में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यव्हार का दोषी पाया गया, वह एक अनाथालय की आड़ में बच्चों के 2305 अश्लील फ़ोटो,135 नेगेटिव स्ट्रिप्स के साथ-साथ दवाएँ और मनः प्रभावी पदार्थ बरामद किए गए। भारत में संगठित बाल यौन अपराध चलाने की यह पहली दोष सिद्धि थी।

causes of human trafficking / मानव दुर्व्यापार के कारण

          


           निर्धनता , लिंग , जाति , वर्ग तथा अन्य प्रयोजनों से रेखांकित एक दूसरे को प्रभावित करने वाले जटिल सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक , ढांचे , प्रक्रियाएँ तथा संबंध आदि अवैध व्यापार का आधार तैयार करते है। इसके दो पक्ष है: मांग पक्ष और आपूर्ति पक्ष । मांग पक्ष में वैश्वीकरण से प्रेरित होकर आर्थिक क्षेत्रों के संबंधित हिस्सों में हुए ढांचागत समझोते तथा परिवर्तनों ने मजदूरो के अंतर्राष्ट्रीय विभाजन और मजदुर मांग बाजार में बदलाव ला दिया है। वह क्षेत्रो तथा देशों के बीच तेजी से बढ़ रही ढांचागत असमानताओं के संदर्भ में हुआ है। पुरुषो और लड़कों की तुलना में अवैध क्रय-विक्रय की गई महिलाओं तथा लड़कियों की बढ़ती हुई मांग, मुख्यतः इस मांग-आधारित यथार्थ की प्रतिक्रया है। आपूर्ति पक्ष में है लिंगभेद विकास प्रक्रिया जो महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा और रोजगार से वंचित करती है और लिंग असमानताओं में तथा महिलाओं की निर्धनता में बढ़ोतरी करती हैं।
          मानव दुर्व्यापार के कारण निम्नलिखित है, जो की इस प्रकार है;-

           (क) मांग कारक

     i.यौन शोषण की मांग,
     ii'सस्ती मजदूरी की मांग,
     iii.अंग व्यापार।

           (ख) आपूर्ति कारक

     i.सेक्स और लिंग,
     ii.जाति/नृजातीयता,
     iii.निर्धनता,
     iv.संगठित अपराध,
     v.अन्य कारक।
               (1.) वैश्वीकरण और उदारीकरण का प्रभाव,
               (2.) मानव सृजित त्रासदी, विवाद तथा प्राकृतिक आपदाएँ,
               (3.) युद्ध/सशस्त्र विद्रोह/राजनीतिक गतिरोध,
               (4.) जलवायु परिवर्तन,
               (5.) विस्थापन,
               (6.) प्रवासन,
               (7.) नई तकनीकें,
               (8.) सामाजिक दृष्टिकोण,
               (9.) भेदभावपूर्ण सांस्कृतिक मूल्य तथा प्रथाएँ,
               (10.) बच्चों की संवेदनशीलता,
               (11.) शासन।
            उपर्युक्त कारक मानव दुर्व्यापार के कारण है, इसमें से अधिकांश कारक पूर्व में    मानव दुर्व्यापार के प्रकार (types of human trafficking) के ही अंतर्गत समझाए जा चुके है । पर अन्य कारक के अंतर्गत आने वे कारण आपदाओ व युद्ध आ जाते है, जिसमें मानव दुर्व्यापार की स्थिति बनती है। जो की विचारणीय है।अन्य कारक के साथ ये ग्यारह कारण आते है। जो की मानव दुर्व्यापार के कारण है।

मानव दुर्व्यापार के प्रकार (types of human trafficking)

           अवैध मानव व्यापार आजकल एक वेश्विक उधोग का रूप ले चूका है और इसमें अर्थव्यवस्था के कई अन्य क्षेत्र भी शामिल है, जिनके कारण परम्परागत रूप से स्वीकार्य यौन शोषण के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के शोषण होते है, हालांकि अवैध व्यापार की गई अधिकांश महिलाए एवं लङकिया अभी भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे यौन उधोग में ही लगाई जाती है।
           मानव दुर्व्यापार के प्रकार निम्न लिखित है; जो की इस प्रकार है;-
               1.यौन शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार,
               2.श्रम शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार,
               3.चिकित्सा शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार,
               4.मनोरंजन एवं खेलों के लिये मानव दुर्व्यापार,
               5.बाल सैनिको के लिये मानव दुर्व्यापार ।

1.यौन शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार

           यौन शोषण के लिये किया जाने वाला अवैध मानव व्यापार कुल अवैध मानव व्यापार के आधे से अधिक है और यह मुख्यतः वेश्यावृति,बाल यौन शोषण और अश्लील फिल्में बनाने के लिये किया जाता है।यह एक मांग आधारित उधोग है। वस्तुतः अवैध मानव व्यापार करने वाले लोगो ने खुलासा किया है की वे वेश्यागामियो की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये दिल्ली और मुम्बई से लेकर राजस्थान और उत्तरप्रदेश के कालीन उधोगो में काम करने वाले युवा चुस्त लड़को की मांग पर एसी लड़कियां उपलब्ध कराते है जिनमे गोरी,कुवारी युवा और आकर्षक लड़किया शामिल होती है। भारत के राष्टीय मानव अधिकार आयोग(N.H.R.C) द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अवैध मानव व्यापार करने वाले 82.5 प्रतिशत लोगो ने यह कहा है कि मांग पर महिलाएँ, बच्चे उपलब्ध कराते है।भारत में,हाल ही के वर्षो में उभरी "चौकाने वाले प्रवृतियों" में से कुच्छेक धार्मिक नगरो/ शहरों में वेश्यावृति, यौन पर्यटन के माध्यम से शोषण और  बाल यौन शोषण है। हालाँकि , असग्रहित आंकड़े प्राप्त करना काफी कठिन है, फिर भी आम राय यह है कि अवैध मानव व्यापार किए जाने वाले व्यक्तियो में अधिकांश महिलाएँ और बच्चे ही होते है। तथापि,पुरुषो और युवा लड़को का  भी अवैध मानव व्यापार किया जाता है। इसके अतिरिक्त अब यौन शोषण के  लिए  विशेष रूप से कम से कम आयु के बच्चों का अवैध मानव व्यापार होने लगा है। यौन शोषण के लिए अवैध मानव व्यापार का निकट सम्बंध ऐसे अपराध तंत्र से है जिसमे नशीली दवाए और हथियार ,कार चोरिया, डकैतियां,अवैध अप्रवासियों को अवैध रूप से रखना,भ्रष्टाचार,अप्रवासन सबंधी,अपराध,नकली वीजा एवं पासपोर्ट तैयार करना और मनी लॉन्ड्रिंग शामिल है । प्राप्त जानकारी के अनुसार नशीली दवाओ के तस्कर वेश्यावृति के लिये महिलाओ का अवैध व्यापार  नहीं करते परन्तु वे उन्हें नशीली दवाओ के कारोबार में धकेल देते है और उनका उपयोग नशीली दवाओ को लाने ले जाने और उन्हें प्रयोग करने में करते है।
           यौन शोषण के लिए मानव दुर्व्यापार का वर्गीकरण निम्नलिखित है,जो की इस प्रकार है;-
                     i.वेश्यावृत्ति,
                     ii.यौन पर्यटन,
                     iii.अश्लील फिल्मांकन,
                     iv.विवाह ।
      i.वेश्यावृत्ति:- वेश्यावृत्ति, व्यापारिक यौन शोषण का सबसे अधिक प्रचलित रूप है। यह विभिन्न रूपो में घटित होती है, जो की इस प्रकार है:-
➤वेश्यालय , वे स्थान है, जिनकी स्थापना विशेष रूप से वेश्यावृत्ति के लिए की जाती है।
➤गलियो की वेश्यावृत्ति में खरीदार, महिलाओ और लड़कियो को गली के एक सिरे पर या गली के किनारे चलते-चलते साथ ले लेता है। भारत में कोलकाता नगर इस बात के लिए प्रसिद्ध है।
➤कुछेक मसाज पॉरलरो और नाई की दुकानों, जो कि यौन गतिविधियों, शोषण के गढ़ है, में भी वेश्यावृत्ति होती है।
➤यहाँ तक कि खुले बारो में भी वेश्यावृत्ति की जाती है। विश्वभर में थाईलैंड ऐसे खुले बारो के लिए मशहूर है
➤एस्कॉर्ट अथवा आउट-कॉल वेश्यावृत्ति।
           आधुनिक दिनों की दासता के अधिकांश मामलो में किसी महिला को अवैध मानव व्यापार के जरिए वेश्यावृत्ति में ऋण बंधुआ के रूप में रखा जाता है वह अपने शोषण द्वारा वेश्यालय अथवा दलाल के लिए जो भी कमाती है उस कमाई का एक भाग उसे दे दिया जाता है। अवैध मानव व्यापार के इन आम तरीको जैसे जबरदस्ती, बल प्रयोग और बल प्रयोग की धमकी देकर अथवा उनके या उनके परिवार के सदस्यों के प्रति हिंसा द्वारा किए जाने वाले एकपक्षीय प्रबंधो का शिकार प्रायः महिलाएँ एवं बच्चे ही होते है। वेश्यावृति में धकेलि गई महिलाओ के मामले में विशेष रूप से अधिकांशतः लड़कियो को ही वेश्यावृति में धकेला जाता है। भारत में वेश्यावृति में प्रवेश की औसतन आयु 9 से 13 वर्ष के बीच है।
           भारत में, कोलकाता के सोनागाछी,मुम्बई के कामतीपुरा और दिल्ली के जी.बी.रोड के वेश्यालयों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी वेश्यावृति, चौकाने वाली प्रवृतियों में से एक बन गई है, जिसमें अवैध व्यापार की गई महिलाओ की बेटियो को वेश्यावृति में धकेल दिया जाता है जो अपनी बूढ़ी हो रही माताओ का स्थान लेती हैं। बंगलादेशी और नेपाली लड़कियो, महिलाओ और बच्चों को अवैध व्यापार के जरिए पाकिस्तान और मध्य यूरोप के रास्ते भारत लाया जाता है अथवा भारत से भेजा जाता है। भारत के केन्द्रीय जाँच ब्यूरो का अनुमान है कि वेश्यावृति में लगे बच्चों की संख्या अकेले भारत में ही कम से कम 1.3 मिलियन है। यूरोप, सयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशो के यौन  पर्यटकों के लिए भारत एक उभरता हुआ गन्तव्य स्थान है।
           हालांकि, अजनबियो  द्वारा कुछेक बच्चों का अपहरण वेश्यावृति के लिए किया जाता है, किंतु  अधिकाश बच्चे अपने जानकारों द्वारा ही वेश्यावृति में धकेले जाते है। भारत में नटो ,बेडियाओ, देवदासियों और जोगिनो की प्रथाए अद्वितीय है। प्रायः समाज के अत्यंत वंचित वर्ग से संबंध रखने वाली महिलाओ और लड़कियो का शोषण होता है और वे वेश्यावृति के लिए उपलब्ध होती है। भारत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से लगभग 50 प्रतिशत और अन्य पिछड़ी जातियो से 12 से 27 प्रतिशत महिलाएँ एवं लड़किया वेश्यावृति में संलिप्त है।
     ii.यौन पर्यटन:- पर्यटन उधोग के विकास ने बच्चों के यौन शोषण, जो कि प्रायः असहनीय रूप में होता है , को बढ़ाने में योगदान दिया है। यौन पर्यटन, अथवा यौन संबंध बनाने के प्रयोजनार्थ किए जाने वाले पर्यटन ने पर्यटन बाजार की मुख्य धारा में अपना स्थान बना लिया है। यह पर्यटन ऐसी स्थितिया उत्पन्न करता है जो आसानी से भोग विलास कीं सुविधा प्रदान करती है। मेजबान देश द्वारा पहचान गुप्त रखने की पेशकश का लाभ , दमनकारी कारकों को न्यूनतम कर देता है। कानून प्रवर्तन के ढ़ीले-ढाले रवैये के कारण दक्षिण एशियाई  देशो को प्राथमिकता दी जा रही है। यौन पर्यटन में ट्रेवल एंजेसी, टूर ऑपरेटर्स, होटल और पर्यटन उधोग की अन्य संस्थापनाए शामिल है, कुछ कंपनिया तो बाल वेश्याओ की उपलब्धता का प्रचार खुले आम करती है। यौन पर्यटन में बाल वेश्या को प्रमुख ग्राहकगण माना जाता है। भारत में राजस्थान, गोआ, उड़ीसा , केरल और तमिलनाडु राज्यो में यौन पर्यटन प्रचलित है। गोआ राज्य को यौन पर्यटन के लिए सबसे आकर्षक स्थान माना जाता है जबकि मुम्बई को "भारत में बाल वेश्याओ के व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र कहा जाता है।"
      iii.अश्लील फिल्मांकन:- भारत में अश्लील फिल्मांकन विशेषकर बच्चों जिनके अवैध व्यापार का दायरा अपेक्षाक्रत बड़ा है, को शामिल करके किया जाने वाला अश्लील फिल्मांकन चिंता का विषय है। वीडियो कैमरों के माध्यम से बच्चों के अश्लील चित्र तैयार किए जाते है। इंटरनेट के माध्यम से इन चित्रो को देखा जाता है और इससे भी अधिक, अब इन्हे मोबाइल फोनो पर भी देखा जा सकता है। इंटरनेट द्वारा,न्यूज़ ग्रुप, चैट रूम, ई-मेल्स, ब्लॉग्स एवं वेबसाइट का प्रयोग करने वाले बाल यौन प्रेमियो की पहचान को गुप्त रखा जाता है। इंटरनेट द्वारा उपलब्ध सामग्री का व्यापक प्रचार संभव हो गया है और इस तक पहुँचना अपेक्षाकृत सरल और सस्ता हो गया है। इस प्रौधोगिकी ने वाणिज्यिक क्रेताओं, यौन पर्यटको, बाल यौन दुर्व्यव्हार और हिंसा की सुविधा भी प्रदान कर दी है। इसके संबंध सीमापार के अनेक कार्यकर्ताओ से है और प्रत्यक्ष रूप में यह पर्यटन से सम्बन्धित है। उदाहरणार्थ, हो सकता है कि एक देश में तो अश्लील सामग्री तैयार करने के लिए किसी दूसरे देश के बच्चों का प्रयोग किया जा रहा हो तथा इस प्रकार अंततः तैयार की गई अश्लील सामग्री को किसी तीसरे देश में प्रयोग में लाया जा रहा हो। अश्लील फिल्माकंन के यौन कृत्यों में भाग लेने के लिए बच्चों को बहकाया जाता है, उनके साथ जबरदस्ती की जाती है। अश्लील चित्र/ सामग्री, किसी बच्चे को बनाए बिना, उसके यौन शोषण की प्रक्रिया के दौरान तैयार की जाती है। उसके बाद इन चित्रो को किसी क़ीमत पर बेचा जाता है अथवा स्वैच्छिक विनिमय के रूप में उसका व्यापार किया जाता है। बच्चों की अश्लील फिल्में देखने वाले लोग इन बच्चों का निरंतर शोषण करते रहते है  जिसके परिणामस्वरूप वे बच्चे इस दुश्चक्र से कभी नहीं निकल पाते।
           सन् 1996 में गोआ के फ्रेडी पीट्स मामले  (फ्रेडी पीट्स बनाम भारत,1996,1992 का सत्र मामला संख्या 24) में सबसे पहले बच्चों के साथ दुर्व्यव्हार और अश्लील फिल्माकंन के प्रति जनता में जागरूकता उत्पन्न की गई। फ्रेडी पीट्स जो कि अज्ञात मूल का एक विदेशी था ; को भारत में बच्चों के साथ यौन दुर्व्यव्हार का दोषी पाया गया, वह एक अनाथालय की आड़ में बच्चों के 2305 अश्लील फ़ोटो,135 नेगेटिव स्ट्रिप्स के साथ-साथ दवाएँ और मनः प्रभावी पदार्थ बरामद किए गए। भारत में संगठित बाल यौन अपराध चलाने की यह पहली दोष सिद्धि थी।
      iv.विवाह :- विवाह के लिए अवैध व्यापार एक अंतर्देशीय और अंतरा-देशीय अवधारणा है। इस अवैध व्यापार को चुनौती देना इसलिए कठिन है क्योकि विवाह का कोई औपचारिक रूप नहीं है। प्रायः गरीब परिवारो की युवा लड़कियो से विवाह करके उन्हें दूसरे राज्य अथवा देश में ले जाया जाता है।  भुवनेश्वर के अधिकार नामक एक मानव अधिकार समूह द्वारा यह पता लगाया गया है कि दुल्हन की कीमत का भुगतान करके, उड़ीसा के नया गढ़ जिले से अनेक लड़कियो को दुल्हन के रूप में ले जाया जाता है, और फिर उनका विवाह झाँसी में युवा पुरुषो के साथ कर दिया जाता है। इस समूह ने उनमे से कुछ को तो बचा लिया लेकिन अनेको लड़कियो का अभी तक भी कोई अता-पता नही है।
           इन कारवाइयो में अनेक दलाल और एजेंट संलिप्त है। वे अभिभावको को पैसा अथवा महगे उपहार जैसे भौतिक लालच देकर और उनके बच्चों के लिए बेहतर जीवन के सपने दिखाकर उन्हें अपनी लड़कियो का विवाह करने के लिए मनाते है। पीड़ितो को अपने जाल में फसाने के लिए इन दलालो और एजेंटो द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले कुछ अन्य तरीको में मित्रता करना,प्यार की घोषणा करना और झूठा विवाह करना शामिल है। कई बार महिलाओ और जवान लड़कियो को फ़साने के लिए काफी मात्रा में पैसा देने , अधिक संपन्न देशो में अच्छी नोकरी और आवास दिलाने का वचन भी दिया जाता है।  उदाहरणार्थ , जवान लड़कियो से विवाह करने के इच्छुक विदेशी  उपयुक्त दुल्हन की तलाश करने के लिए बिचोलियों से संपर्क करते है।ऐसे व्यक्तियो के लिए हैदराबाद एक नियमित गंतव्य स्थान बन गया है। अरब  राष्ट्रिको के एजेंट सवेंदनशील परिवारो की सुंदर लड़कियो का पता लगाने  के  लिए शहर भर में घूमते है। विवाह हो जाने के उपरांत अभिभावको को दूल्हे केपूर्ववृत्त और एजेट की विश्वसनीयता की जांच करने का समय दिए बिना ही लड़की को घर से ले जाया जाता है। कुछ समय उपरांत , अरब राष्र्टिक  लड़की को छोड़ देता है और वह दलालो की दया पर निर्भर हो जाती है। तब दलाल उस लड़की को मुम्बई,पुणे और गोआ इत्यादि के वेश्यालयों में बेच देते है। तथापि, चूँकि पीड़िता के अभिभावक कानून और अपने अधिकारो के प्रति अनजान होते है, अतः पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने यदा-कदा ही जाते है।
           वाशिंगटन टाइम्स की एक रिपोर्ट, दासता के लिए बनी दुल्हनें में यह उद्घाटित किया गया है कि बंगलादेश की गरीब लड़किया विवाह के प्रयोजनार्थ  अवैध व्यापार द्वारा हरियाणा में लाई जा रही है ताकि राज्य में जनसांख्यिकीय असंतुलन को ठीक किया जा सके,इसके साथ ही इन्हे घरेलु नौकर के रूप में दिल्ली ,पटना और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भी भेजा जा रहा है।
           अवैध व्यापार करने वाले , महिलाओ और युवा लड़कियों की संवेदनशीलता का फायदा उठाते है ताकि शोषण के लिए उन्हें बंधक बनाया जा सके रिश्तेदार और संरक्षक, जो अविवाहित लड़की को अपने परिवार पर एक बोझ मानते है को संभावित पीड़ित के साथ भविष्य में क्या होने जा रहा है के बारे में पता होता है या कई बार उनसे छिपाया जाता है, को प्रायः भौतिक लालच दिया जाता है। दास बनाने के लिए अवैध व्यापार की गई महिलाओ और युवा लड़कियो के मामलो में अपहरण बहलाना-फुसलाना और बलात्कार शामिल होता है किन्तु ऐसे मामले बहुत कम है।

2.श्रम शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार

           अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O) के अनुमान के अनुसार, अवैध मानव व्यापार का दूसरा प्रमुख रूप शोषणात्मक अथवा सस्ते श्रम के लिए अवैध मानव व्यापार(18 प्रतिशत) है। भारत में श्रम के अवैध व्यापार का प्रमुख कारण खेतो और निर्माण स्थलो तथा घरेलू कार्यो के लिए बंधुआ मजदुर उपलब्ध करना है। सस्ते श्रम की मांग के कारण छोटी फैकिट्रया जैसे ईट के भट्टे , खदाने और शीशा पीसने के स्थान आदि अवैध व्यापार का प्रथम बिंदु बनने जा रहे है, भारत मध्य-पूर्व और इराक तथा अफगानिस्तान के ठेकेदारों के लिए सस्ते अकुशल श्रम का बहुत बढ़ा आपूर्तिकर्ता बन चूका है।
           N.H.R.C द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार अधिकांश अवैध व्यापारियो ने यह बताया कि उन्होंने अवैध व्यापार करने से पूर्व तत्पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए मांग वाले क्षेत्रों का पता लगाया। अवैध व्यापार करने वालो ने आसान आपूर्ति अथवा स्रोत क्षेत्रों की भी पहचान की। भारत के सम्बन्ध में कटु सत्य यह है कि भारत आसान स्रोत क्षेत्र बन चूका है। सभी श्रम और उपभोक्ता बाजार सामाजिक और राजनीतिक रूप से इस प्रकार तैयार किए गए है कि लोगो द्वारा खरीदी जाने वाली और बेचीं जाने वाली वस्तुओ का निर्धारण बहुत हद तक ढांचागत और सैध्दांतिक कारको के एक जटिल समूह द्वारा होता है। इसके अतिरिक्त  राष्ट्र इस बात का निर्धारण करने में एक  महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है कि क्या और किसके द्वारा तथा किन शर्तों पर क्या खरीदा गया और क्यों बेचा गया। दूसरे शब्दों में, "अवैध व्यापार के मांग पक्ष" का पता लगाने का अर्थ केवल अवैध व्यापार द्वारा लाए गए व्यक्तियो के श्रम, सेवाओ का शोषण अथवा उपभोग करने वाले व्यक्ति के बारे में पूछताछ करना ही नहीं है, अपितु उस तरीके का पता लगाना भी है जिसके द्वारा राष्ट्र में, कार्रवाई और प्रतिक्रिया के संयोग द्वारा ऐसी परिस्थतियों का निर्माण हुआ जिनके अंतर्गत ऐसे श्रम/सेवाओ का उपभोग अथवा शोषण करना संभव अथवा लाभकारी हो सका। भारत में यह "कार्रवाईया और प्रतिक्रियाएँ" उच्च वर्गीय भू-स्वामियों द्वारा बंधुआ मजदूरी के प्रयोग को स्थानीय प्राधिकारियों की मौन स्वीकृति या निम्न वर्गीय समुदायो की लड़कियो से बार-बार होने वाले बलात्कारों को नजरअंदाज करने से लेकर लिंग-भेद के प्रति निष्क्रिय सरकार द्वारा वित्त पोषित H.I.V एड्स प्रबंधन परियोजनाओं के सक्रिय प्रचार तक फैली  हुई है। ऐसी परियोजनाओं में दलालों और वेश्यालयों के प्रबंधको कंडोम वितरण के प्रयोजनार्थ "भद्र शिक्षको" के रूप में रखा जाता है, जिससे अवैध व्यापार करने वालो के रूप में  उनकी जाँच एवं अभियोजन में कठनाई आती है जबकि वे "किसी के द्वारा यौन क्रिया के लिए बेचे जाने वाले शारीर की कमाई पर अपना जीवनयापन करते है" और इस प्रकार कानून को तोड़ते है।
           शोषणात्मक और सस्ता श्रम आमतौर पर श्रम आधारित और/अथवा अनियमित उधोगो में पाया जाता है,जैसे कि;
           ➤कृषि एवं मछली पालन,
           ➤घरेलू कार्य,
           ➤निर्माण,खनन,खदान और ईट भट्टे,
           ➤उत्पादन प्रक्रमण एवं पैकेजिंग,
           ➤मार्केटिंग ट्रेडिंग एवं अवैध गतिविधिया,
           ➤भीख माँगना,
           ➤बाल मजदूरी, विशेषकर खानपान, कपड़ा और कालीन उधोग में ।
           शोषणात्मक अथवा सस्ते श्रम की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब अनैतिक कार्य करने वाला नियोक्ता संवेदनशील कामगारों का शोषण करने के लिए विधि प्रवर्तन की खामियों का लाभ उठता है। ये कामगार,अत्यधिक बेरोजगारी,गरीबी,अपराध,भेदभाव, भ्रष्टाचार,राजनितिक मतभेद और प्रथाओ की संस्कृतिक स्वीकार्यता के कारण शोषणात्मक श्रम प्रक्रियाओ के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाते है। अप्रवासी विशेष रूप से संवेदनशील होते है,परन्तु श्रम के मामले में व्यक्तियो का अपने ही देश में भी शोषण होता है।
           भारतीय पुरुषो, महिलाओ और बच्चों का श्रम के लिए अवैध व्यापार देश और विदेश दोनों जगहों पर होता है, जिसमे एशियाई, मध्य पूर्व और पश्चिमी देशो में अनैच्छिक घरेलू दासत्व और अरब की खाड़ी में निर्माण कार्य के लिए भारतीय पुरुषो का अवैध व्यापार शामिल है। भारत में मजदूरी के लिए अन्य देशो के लोगो का अवैध व्यापार भी किया जाता है। प्रायः नेपाल और बंगलादेश से महिलाओ और लड़कियो का अवैध व्यापार होता है जिन्हें विभिन्न प्रकार की अनैच्छिक घरेलू सेवाओ में लगाया जाता है। श्रम के विभिन्न रूपो का वर्णन नीचे दिया गया है, जो की इस प्रकार है;-
           i.बंधुआ मजदूर,
           ii.बाल मजदूर,
           iii.घरेलू दासत्व,
           iv.भिक्षावृत्ति ।
      i.बंधुआ मजदूर:- किसी बंध-पत्र का प्रयोग या ऋण किसी व्यक्ति को पराधीनता में रखना आदि बल या जबरदस्ती का ही एक अन्य रूप है। भारत के बंधुआ मजदूरी प्रथा (निवारण) अधिनियम , 1976 में इसे "बंधुआ मजदुर" अथवा "ऋण बंधुआ" की संज्ञा दी गई है। इसे संयुक्त राष्ट्र नयाचार में अवैध व्यापार से सम्बंधित शोषण के रूप में शामिल किया गया है। जब अवैध व्यापार करने वाले अथवा भर्ती करने वाले व्यक्ति,ऋणी कामगारों को अपने रोजगार के निबंधनों का एक भाग मानते हुए उनका विधि- विरुद्ध शोषण करते है तो विश्वभर में कामगार उस समय ऋण बंधुआ के रूप में पीड़ित हो जाते है। बंधुआ मजदूरी की परम्परागत प्रणाली में कामगारों को ऋण विरासत में मिलता है। उदाहरणार्थ, भारत में परम्परागत बंधुआ मजदूरी प्रथा में अनेक लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी दासता भोग रहे है। हालाँकि , बंधुआ मजदूरी अपने परम्परागत रूप में कृषि क्षेत्र  में अभी भी बड़े पैमाने पर पाई जाती है, किन्तु यह अन्य क्षेत्रों जैसे घरेलु सेवाओ,ईट भट्टो, चमड़ा उधोग, निर्माण स्थलो,चावल मिलो,खनन एवं खदानों, शीशा बनाने, ताले बनाने और कालीन बुनने जैसे उधोगो में भी तेज़ी से बढ़ रही है। बंधुआ मजदूरो की अधिकांश संख्या नीची जाति के स्तर ग्रामीण लोगो अथवा अन्य अल्पसंख्यक समूहों से संबंध रखती है। पीड़ित के अभिभावकों अथवा संरक्षकों को दिए गए ऋण अथवा अन्य सुविधाओ वास्तविक या काल्पनिक के भुगतान के रूप में बच्चों, महिलाओ एवं पुरुषो को दुर्व्यव्हार करने वालो को सौप दिया जाता है। भारत में बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओ के कारण अवैध व्यापार का यह रूप कई गुणा बढ़ गया है।पीड़ित व्यक्ति दासो की तरह काम करते रहते है और उन्हें यह कभी भी पता नहीं चलता कि अंततः कब ऋण चूका हुआ माना जाएगा।
           अध्ययनों से प्रकट होता है कि अवैध व्यापार के अधिकांश पीड़ित ,धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक और दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों की अनाधिसूचित आपराधिक जनजातियो सहित कमजोर अनुसूचित जातियो और अनुसूचित जनजातिय समुदायो से होते है। उच्चतम न्यायालय द्वारा 1985 की रिट याचिका (सिविल, संख्या 3922) में दिनाँक 11 नवम्बर 1997 को दिए गए निर्दशो के अनुसरण में N.H.R.C द्वारा देश के विभिन्न भागो में बंधुआ मजदूर अधिनियम के कार्यान्वयन पर नजर रखी जा रही है।
      ii.बाल मजदूर:- श्रम के अवैध व्यापार का एक अन्य शोषणात्मक रूप बाल मजदूरी है। भारत में महिलाओ एवं बच्चों के अवैध व्यापार पर N.H.R.C द्वारा किया गया एक कार्य अनुसंधान इस तथ्य का साक्ष्य है कि वंचित बच्चे किस प्रकार- अपर्याप्त पारितोषिक के लिए अत्यंत कष्टप्रद और शोषणात्मक परिस्थितियो के घंटो तक कार्य करते है। वस्तुतः कई सवैधानिक प्रावधानों और इस विषय पर 1948 से 1986 के बीच पारित किए गए अनेक अधिनियमो के बावजूद भी बाल मजदूरी का डिकन्स संसार भारत के लगभग सभी राज्यो और संध शासित क्षेत्र प्रशासनों में तेज़ी से फैल रहा है। इसने 6 I.L.O अभिसमयो, जिनमे भारत एक पक्षकार है और बच्चों के अधिकार पर अभिसमय जिसमे भी भारत एक पक्षकार है प्रावधानों को ललकारा है। सविधान कानून और संधि की प्रतिबद्धताओं के बावजूद भी इस स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव लाने की असमर्थता गहरी पेंठ बनाई हुई सामाजिक और आर्थिक समस्याओ का समाधान करते समय ऐसे साधनो की परिमितताओ को दर्शाती है, इसके लिए वास्तव में व्यापक और व्यवहार्य उपाय किए जाने चाहिए।
      iii.घरेलू दासत्व:- घरेलू दासत्व , शोषणात्मक मजदूरी का एक विचित्र रूप है। चूँकि इसका कार्यस्थल एक निजी स्थान होता है, इसलिए दूसरो पर किए जाने वाले दुर्व्यहार का साक्ष्यबध्द अथवा दस्तावेजबध्द नही किया जा सकता। इसमें समय पर पूरा नियंत्रण होता है क्योंकि इसमे 'कार्य की समाप्ति पर अलग क्वार्टर में रहने की व्यवस्था' नही होती। चूँकि प्राधिकारी निजी सम्पतियों का निरक्षण उतनी आसानी से नही कर पाते है जितनी आसानी से वे औपचारिक कार्यस्थलों का निरीक्षण करते है इसलिए ऐसा वातावरण शोषण के अनुकूल होता है। भारत में, अवैध भर्ती एजेंसियों के माध्यम से घरेलू दासत्व का धंधा बड़े पैमाने पर चल रहा है, जो, झारखंड, सुंदरवन, आंध्रप्रदेश, बिहार, उड़ीसा और प्राकृतिक आपदाओ, त्रासदियों से प्रभावित अन्य राज्यो से शोषण योग्य मजदूरो को उपलब्ध करवाती है।
           दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे कम विकसित देशो से विदेशी अप्रवासियों, विशेषकर महिलाओ, को खाड़ी के देशो मलेशिया, सिंगापूर,ताईवान,यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे अधिक विकसित देशो में घरेलू कार्य करने के लिए भर्ती किया जाता है। परन्तु इनमे से अधिक स्थान घरेलू नौकरो को वैसा विधिक संरक्षण उपलब्ध नही कराते जैसा कि वे अन्य क्षेत्रों में विदेशी कामगारों को उपलब्ध कराते है।
           जब घरेलू नौकर किसी घर में अनैच्छिक संवेदनशीलता को देखते हुए एक कठोर विधि प्रवर्तन और पीड़ित संरक्षण की आवश्यकता होती है। वे घरेलू नौकर जो दुर्व्यवहार करने वाले नियोक्ता कोछोड़कर जाने का विकल्प चुनते है उन्हें कभी-कभी "भगोड़ा" कहा जाता है और अपराधी के रूप में देखा जाता है हालाँकि, उन्हें अवैध व्यापार के संभावित पीड़ित के रूप में देखा जाना चाहिए।
      iv.भिक्षावृत्ति :- नाबालिगों को भीख मांगने के कार्य में लगा कर उनका शोषण करना अवैध मानव व्यापार का एक ऐसा अन्य रूप है जिसने सक्षम प्राधिकारियों के समक्ष नई चुनौती खड़ी कर दी है। युवा पीड़ितो की पहचान करने हेतु प्रभावी प्रक्रिया विकसित करने और संदिग्ध बाल अवैध व्यापार को सिद्ध करने के लिए केवल जाँच प्राधिकारियों पर ही बल नहीं दिया जाना चाहिए अपितु बाल संरक्षण प्राधिकारियों और अप्रवासन अधिकारियो से भी पीड़ित के लिए पर्याप्त संरक्षण, आवासीय उपाय करते हुए प्रत्यावर्तन तंत्र सहित इस अवधारणा को समाप्त करने के लिए अनुग्रह करना चाहिए।
           ऑस्कर पुरस्कार से सम्मानित फिल्म स्लमडॉग मिलिनयर में जबरदस्ती भीख मंगवाने वाले एक गिरोह को दिखाया गया है जिसमें अवैध व्यापार करने वाले बुरे लोग बच्चों को अँधा कर देते है ताकि वे पर्यटको की सहानुभूति प्राप्त करके पैसा बटोर सकें। किन्तु बलात भिक्षावृत्ति, अनेक यूरोपियन यूनियन देशो में भी एक समस्या है जिसमे अवैध व्यापार करने वाले लोग पूर्वी यूरोपियन देशो से घनी पश्चिमी देशो में बच्चों की तस्करी करते है और उन्हें गलियो में भीख मागने पर मजबूर करते है । हेलसिन्की मे  रोमानिया और बुल्गारिया से अवैध व्यापार के जरिए लाए गए बच्चों से भीख मांगने का कार्य जबरदस्ती करवाया जाता है।
           सन् 1997 में सऊदी अरब के प्राधिकारियों द्वारा अनेक भारतीय मुस्लिम बच्चों को जेद्दा, मक्का और मदीना में भीख मांगते हुए पकड़ा गया था और उन्हें, उनके महावाणिज्यिक दूतावास द्वारा आवश्यक यात्रा दस्तावेज जारी किए जाने के उपरांत समूहों में भारत वापस भेजा गया था। इन बच्चों को इस आधार पर वहाँ ले जाया गया था कि वे मक्का की यात्रा करना चाहते है। इसकी बजाए, उनसे वहा पर आने वाले तीर्थ यात्रियों से प्रतिदिन जबरदस्ती भीख मंगवाई जाती थी। उनके भारत वापस लौटने पर यह पता चला कि उनमे से अनेक का स्वास्थ्य काफी ख़राब हो चूका था। यह मामला भारत के राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोग के संज्ञान में लाया गया और इस विशिष्ट मामले में पश्चिम बंगाल जहाँ से बच्चों का अवैध व्यापार किया गया था , की सरकार के साथ-साथ भारत सरकार के ग्रह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय को बच्चों के संरक्षण के लिए निवारात्मक उपाय करने का सुझाव दिया गया , विशेष रूप से हज यात्रा के दौरान इस मामले की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही की N.H.R.C द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने अनुरक्षक के पासपोर्ट पर बच्चे का नाम पृष्ठांकित करने की बजाए,  अप्रैल 1997 से प्रत्येक बच्चे के संबंध में व्यक्तिगत पासपोर्ट जारी करना आरंभ कर दिया।
           भिक्षावृत्ति के उद्देश्य से किए जाने वाले अवैध व्यापार की स्थिति में विकलांग बच्चे अधिक संवेदनशील स्थिति में होते है। इस कार्य के लिए निर्धनता और अक्षमता एक आदर्श संयोग है और ऐसे बच्चों का अवैध व्यापार इस विश्वास से किया जाता है कि अक्षमता के कारण भिक्षा देने वाले में दया उत्पन्न होगी। यह विश्वास, भीख मांगने वाले बच्चे को उसकी आमदनी बढ़ाने के लिए जानबूझ कर आहत अवस्था में रहने के गम्भीर जोखिम में डाल देता है। गली के वे असहाय बच्चे एक अन्य सवेदनसील श्रेणी है, जिनका अपहरण आसनी से किया जा सकता है।

3.चिकित्सा शोषण के लिये मानव दुर्व्यापार 

           जो व्यक्ति अंगो को खरीद सकते है, उनके अंगो के प्रतिरोपण के लिए बच्चों सहित व्यक्तियो का अवैध व्यापार , अवैध व्यापार करने वालो के लिए एक "लाभप्रद व्यापार" है।
           गुर्दा एक ऐसा अंग है जिसका अवैध व्यापार आमतौर पर होता है। प्रायः लोगो को बुरे आर्थिक हालातों से बचने के लिए अपने अंग बेचने के लिए मजबूर किया जाता है, उनका अपहरण किया जाता है अथवा उनके साथ जबरदस्ती की जाती है। जब "दानकर्ता" को अंगदान करने के लिए मजबूर किया जाता है अथवा जब उसे तयशुदा कीमत नहीं दी जाती तो इसे अंगो का अवैध व्यापार कह सकते है। केवल अंग ही अवैध व्यापार की जाने वाली शारीरिक सामग्री ही नहीं है, मानव तंतुओं सहित मानव के अन्य अंगों का भी व्यापार होता है। ऐसे मामले भी देखने में आए है जिनमे मृत शरीरों से मानव अंगों को निकाल लिया गया और उन्हें संबंधियो की जानकारी और सहमति के बिना बेच दिया गया।
          मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम,1994 के पारित होने से पूर्व भारत में अंग व्यापार का एक सफल विधिवत बाजार था। कम लागत और मानव अंगो की उपलब्धता के कारण पुरे विश्व से व्यापार होता था। इसने भारत को विश्व के सबसे बड़े किडनी प्रत्यारोपण केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया था। भारत में अंगो के विधिवत व्यापार की अवधि के दौरान अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई। कुछेक मामलो में, रोगियों को इस बात का पता ही नहीं चलता था कि उनकी किडनी प्रत्यारोपित कर दी गई है। अन्य समस्याओं में यह समस्या शामिल थी कि रोगियो को जो राशि से कही अधिक होती थी। दान से सम्बंधित नैतिक मुद्दों के कारण भारत सरकार को अंगो की बिक्री को प्रतिबंधित करने के लिए एक विधायन पारित करना पड़ा।
           मार्च 2008 में अंगो की बिक्री पर प्रतिबंध लगाए जाने तक, फिलीपीन्स में अंगो की बिक्री वैध थी। चीन में अंगो की खरीद प्रायः मृत्युदंड प्राप्त कैदियों से की जाती है। ह्यूमन राईटस वॉच के एक अनुसंधानकर्ता निकोलस बैकलिन द्वारा यह अनुमान लगाया गया कि चीन से आने वाले 90 प्रतिशत अंग मृतक कैदियों के है। चीन उदार कानून के बावजूद अभी भी प्रत्यारोपण के लिए अंगो की कमी से जूझ रहा है। चीन की सरकार ने शेष विश्व द्वारा गंभीर छानबीन किए जाने के उपरांत अंगो की वैध बिक्री को समाप्त करने के लिए विधायन पारित किया। तथापि विधमान में ऐसा कोई विधायन नहीं है जो ऐसे मृतक कैदियों जिन्होंने मृत्युदंड दिए जाने से पूर्व अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हो, के अंगों को एकत्र करने को निषिद्ध करता हो।
           इरान में लाभ के लिए किडनी बेचना वैध है, विधमान में इरान में किडनी प्रत्यारोपण के लिए कोई प्रतीक्षा सूची नहीं है। किडनी की बिक्री वैध और विनियमित है। दि चैरिटी एसोसिएशन फॉर दि स्पोर्ट ऑफ़ किडनी पेशेन्टस (C.A.S.K.P) और दि चैरिटी फाउंडेशन फॉर स्पेशल डिसीजेज ( C.F.S.D) द्वारा सरकार के सहयोग से अंगो के व्यापार को नियंत्रित किया जाता है। ये संगठन दानकर्ता और प्राप्तकर्ता को मिलाते है और सुसंगतता सुनिश्चित करने के लिए जाँच करते है। इरान में दानकर्ता को दी जाने वाली राशि भिन्न-भिन्न है किन्तु यह औसतन 3000 डॉलर से 5000 डॉलर तक होती है। कुछेक मामलों में रोजगार की पेशकश भी की जाती है।

4. मनोरंजन एवं खेलों के लिए मानव दुर्व्यापार 

           इसे निम्नलिखित आधारो पर समझा जा सकता है , जो की निम्नलिखित है;-
                     i.लैप-डांसिंग,
                     ii.बीयर बार ,
                     iii.नौटकी/नाच/ञात्रा ,
                     iv.खेल यौन-पर्यटन,
                     v.कैमल जॉकी ।
      i.लैप-डांसिंग:- यूरोप, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण-पूर्व एशिया में फल-फूल रहे लैप-डांसिंग क्लबों और 'गो-गो' बारों ने पैसा देकर यौन क्रिया करने की बढ़ती हुई मांग के लिए आग में घी का काम करने के साथ-साथ अवैध मानव व्यापार के प्रवाह के कारकों को प्रोत्साहित करने का काम किया है।ये लैप-डांसिंग क्लब "यौन क्रिया गतिविधियों के अड्डे" है।
     ii.बीयर बार:- भारत,थाईलैंड और कंबोडिया में बीयर बार वेश्यावृत्ति के लिए लड़कियो के अवैध व्यापार के अग्रणी स्थल बन चुके है। महिला वेटरों और डांसरों को यौन संबंध बनाने के लिए 'झीने परदों' के पीछे ले जाया जाता है और उन्हें बार के मालिकों तथा दलालों द्वारा ऋण बंधुआ प्रणाली के अंतर्गत रखा जाता है।
      iii.नौटकी/नाच/ञात्रा :- नृत्य मंडली जिसे उत्तर भारत में नौटकी और पूर्व (बंगाल एवं उड़ीसा) में ञात्रा कहा जाता है, के भाग के रूप में मनोरंजन के लिए बच्चों, विशेषकर युवा लड़कियों का अवैध व्यापार परम्परागत रूप से हो रहा है। शहरो में अब यह 'आधुनिक रूप' ले रहा है, ये युवा लड़किया क्लबों और होटलों में डांस करती है अथवा इन्हे कलाबाजी के करतब दिखाने के लिए सर्कस में ले जाया जाता है। यह देखने में आया है कि नेपाली लड़कियो को काम सिखाने , कमाई करने तथा साथ-साथ पढ़ाई करने का वादा देकर भारतीय सर्कस में काम करने के लिए लालच दिया जाता है। अभिभावक स्वयं ही अपने बच्चों को भारतीय सर्कस के मालिको अथवा सर्कस के एजेंटो को सौप देते है। क्योकि उन्हें इसमे कोई बुराई नजर नही आती है।परन्तु वे दोबारा अपने बच्चों से कभी नही मिल पाते क्योकि सर्कस हमेशा यात्रा करती रहती है और उन्हें यह भी पता नहीं लग पाता कि उनके बच्चों को क्या कष्ट है उत्तर प्रदेश और भारत के यात्रा मेलों में लड़को को नाचने वाले लड़कों के रूप में भेजने के लिए लड़को का अवैध व्यापार किया जाता है।
     iv.खेल यौन-पर्यटन:- यूनान में वर्ष 2004 के ग्रीष्म ओलंपिकस के दौरान अवैध मानव व्यापार के पीड़ितो की संख्या में 95 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली। इस अंतरार्ष्ट्रीय खेल समारोह की टीमो में से एक के चिकित्सक ने यह सुचना दी की किस प्रकार कुछेक एथलीटों ने उसे अपनी "ड्यूटी" के रूप में सेक्स उपलब्ध करवाने के लिए कहा ( और उसने मना कर दिया) जर्मनी और अब दक्षिण अफ्रीका में खेले गए विश्वकप के दौरान भी यही सब कुछ घटित हुआ। अक्टूबर में हुए राष्ट्रमंडल खेलो के लिए वेश्यालयों के मालिकों ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रो से दिल्ली में नई लड़कियो का अवैध व्यापार करना प्रारंभ कर दिया । वेंकूवर ने ओलम्पिक्स की तैयारी में एक अभियान आरंभ किया जिसका शीर्षक था "सेक्स की खरीद खेल नही है।"
     v.कैमल जॉकी:- कैमल जॉकी के रूप में काम करने के लिए केवल युवा लड़को का ही अवैध व्यापार किया जाता है। वे युवा और ऊंट की पीठ पर बांधे जा सकने योग्य छोटे होने चाहिए। उन्हें दौड़ के दौरान ऊंट की पीठ पर इस प्रकार बांध दिया जाता है ताकि वे डर कर कूद न जाएँ।ऊंटो को एक रास्ते पर दौड़ाया जाता है।ऊंट प्रायः पागल और हिंसक हो जाते है और अपनी पीठ पर बंधे लड़कों को मार डालते है। जो बच्चे नीचे गिर जाते है उनकी जान को मार्ग पर दूसरे ऊंटो द्वारा मारे जाने का खतरा होता है, और यदि वे ऊंटो पर चढ़ने से इंकार करते है तो उन्हें पीटा जाता है और किसी भी प्रकार से ऊंट पर चढ़ाने के लिए उनका शोषण किया जाता है।

5. बाल सैनिको के लिये मानव दुर्व्यापार 

           बच्चों का सैनिकीकरण व्यक्तियो के अवैध व्यापर का एक अद्वितीय और गंभीर कड़ी है जिसमें प्रायः बच्चों को  विवादास्पद क्षेत्रों में श्रम अथवा यौन शोषण के लिए बलपूर्वक,छल-कपट, अथवा जोर-जबरदस्ती द्वारा विधि विरुद्ध तरीके से भर्ती किया जाता है। इस संबंध में सरकारी ताकते अर्धसैनिक संगठन अथवा विद्रोही समूह, अपराधकर्ता हो सकते है। हालांकि विधि विरुद्ध तरीके से भर्ती किए जाने वाले और विद्रोही गतिविधियों में प्रयोग किए जाने वाले बाल सैनिको की आयु 15 और 18 वर्ष के बीच हो सकती है, किंतु इसमे 7 से 8 वर्ष की आयु के बच्चे भी होते है जो कि अंतराष्ट्रीय कानून के तहत भी विधि- विरुद्ध है।

मानव दुर्व्यापार [ human trafficking information in hindi]


          मानव दुर्व्यापार समाज का सबसे घृणित रूप है। यह एक ऐसी आपराधिक प्रथा है जिसमें मानव का एक वस्तु की तरह शोषण करके लाभ कमाया जाता है। इस कुप्रथा में फंसे पीड़ितों पर पूरी तरह से नियन्त्रण किया जाता है जिससे वे रोटी, कपड़ा, पैसा तथा अन्य सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इनके व्यापारियों पर पूर्णतया निर्भर हो जाते हैं। इस शोषण में इन शोषितों से देह व्यापार करवाना, इनके अंगों का व्यापार करना, इत्यादि शामिल हैं। आधुनिक दासता का सबसे भयावह रूप मानव दुर्व्यापार है। इस ओर समाज का ध्यान आकर्षित है परन्तु कुछ सफलता हाथ नहीं लगती। इस प्रकार मानव की गरिमा खंडित होती है। इस व्यापार के मूल कारण गरीबी, अशिक्षा तथा समाज में व्याप्त कई कुरीतियाँ हैं। इस व्यापार में महिलाओं का ही नहीं बल्कि बच्चों के मूलभूत अधिकारों का भी हनन होता है। इस व्यापार में शामिल अधिकांश महिलाएं पिछड़े और विकासशील देशों की होती हैं। आज भारत में मानव दुर्व्यापार हेतु कई मैरिज ब्यूरो, नौकरी दिलाने वाले संस्थान एवं कोचिंग सेंटर, मसाज पार्लर, डांस बार, आदि संलग्न हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को बंधुआ मजदूरी उन्मूलन के लिए अधिकृत किया हैं। आयोग ने प्रभावी भूमिका का निर्वहन किया है तथा विशेषतः गोंडा सर्कस केस में यौन शोषण के प्रकरण में पीड़ितों को मुक्त कर दोषियों को कानून के हवाले किया।  मानव दुर्व्यापार एक ऐसी त्रासदी है जिसके उन्मूलन हेतु समाज व सरकार को मिलकर कार्य करना होगा।

मानव दुर्व्यापार अवधारणा का क्रमिक विकास


               आज के बदलते हुए वैश्विक परिदृश्य में "मानव दुर्व्यापार" का रूप बदल कर "नया दास व्यापार" हो गया है। इस उपमा का अर्थ है कि जिन लोगों का अवैध व्यापार किया जाता है, वे ऐसी परिस्थितियों में जीवन व्यतीत करते है जैसा कि पुराने समय में दास लोग किया करते थे । अतः अवैध मानव व्यापार सीमाओ से ऊपर उठकर तथा विश्व के सभी देशो को प्रभावित करते हुए चिंता का एक महत्वपूर्ण विषय बन गया है।
             आम बोलचाल की भाषा में अवैध व्यापार को ऐसे व्यापार के रूप में परिभाषित किया जाता है,जिसमे विभन्न नैतिक,सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक कारणों की वजह से संलिप्त नही होना चाहिए। अतः अवैध ड्रग व्यापार ,अवैध शस्त्र व्यापार तथा अवैध मानव व्यापार जैसे शब्दों का सृजन हुआ। अवैध मानव व्यापार की अवधारणा, शोषण की उस आपराधिक प्रथा की ओर इशारा करती है जिसमे लाभ अर्जित करने के लिए मनुष्य के साथ बिकने वाली वस्तुओं की भांति व्यवहार किया जाता है। आइए , देखते है कि अवैध मानव व्यापार की अवधारणा कैसे विकसित हुई। अवैध मानव व्यापार की समस्या ग्रीक शहर राज्यो के समय से ही विद्यमान है। ग्रीक राज्य तथा उनकी देखा-देखी अन्य मुख्यतः वेश्यावृति के लिए लड़कियों और महिलाओं का अवैध व्यापार करते थे । ट्रेफिक अर्थात "अवैध व्यापार" शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग महिलाओं के तथाकथित "गोरे दास व्यापार" के सदर्भ में किया गया था तथा अवैध व्यापार का पहला ज्ञात चरण मध्यकालीन युग माना जाता है। जब प्रतिवर्ष पूर्वी प्रशिया,चैकोस्लोवाकिया ,पोलैण्ड, लिथुआनिया, एस्टोनिया तथा लतविया से हजारो महिलाओं और बच्चों को इटली और दक्षिणी फ़्रांस के दास बाजारों में बेचा जाता था। दूसरा चरण मध्यकालीन युग के अंतिम भाग तथा नवजागरण काल के आरंभ के दौरान में आया जब मुख्यतः रूस और यूक्रेन से महिलाओ और बच्चों का अवैध व्यापार किया जाता था और उन्हें इटली और मध्य-पूर्व में दासो की तरह बेच दिया जाता था।बोस्निया, अल्बानिया तथा कॉकेसियन पर्वतो से भी दास लाए जाते थे। उनका हश्र भी इटली और फ़्रांस के दास के रूप में हुआ। जब ओटोमन साम्राज्य नेकांस्टेंटीनोयल पर विजय प्राप्त की तब पश्चिमी यूरोप में जाने वाला अवैध व्यापार का यह मार्ग बंद हो गया। तब पश्चिमी यूरोपीय देशो ने दासो के स्त्रोत के रूप में पश्चिमी अफ्रीका की ओर ध्यान देना शुरू किया। सर्बिया ,अल्बानिया, बोस्निया, तुर्की, रूस था पूर्वी यूरोप के आधुनिक दासो ने अपने आप को मध्यकालीन युग तथा नवजागरण काल के आंरभिक समय के दासो के साये में ढाल लिया है। ज्यादा कुछ नहीं बदला है, सिवाय इसके की अब ये महगे कपड़े पहनते है, मोबाइल फोन रखते हैं और महगी गाड़ियों में सफ़र करते है। रोचक बात यह है कि आज सम्मानित एवं इज्जतदार लोग अवैध व्यापार में संलिप्त है जिससे इनकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है।
         समकालीन अवैध मानव व्यापार के ऐतिहासिक पूर्व लक्षण है। पुरातन दास व्यापार, "गौरे दास व्यापार" तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुरुषो और महिलाओ का दासतावत परिस्थितियों में शोषण यह बताता है कि अवैध मानव व्यापार का रूप निरंतर बदल रहा है। 19वीं शताब्दी में दासता पर प्रतिबंध लगने से पहले पश्चिमी यूरोप और सयुक्त राज्य ने ट्रांस-एटलांटिक दास व्यापार से बहुत लाभ कमा लिया था। खदानों और बागानों में काम करने के लिए दासो को पानी के जहाजो द्वारा अफ्रीका से अमेरिका भेजा जाता था। ट्रांस -एटलांटिक दास व्यापार को समाप्त करने में ब्रिटेन मुख्य संचालक शक्ति था। ब्रिटिश संसद ने वर्ष 1807 में दासता पर प्रतिबंध लगा दिया था। वर्ष 1833 में एक मिलियन में से तीन-चौथाई दासो को मुक्त कराते हुए ब्रिटेन के उपनिवेशों में भी दास प्रथा समाप्त कर दी गई। इसी समय तथा इसके बाद भी कई दशको तक ब्रिटेन ने अपनी नोसैनिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए पुरे विश्व में अपनी दासता रोधी नीति को लागू का किया। अतः ब्रिटेन ने एक अंतराष्ट्रीय पुलिस बल की कई विशेषताओं को आत्मसात किया, एस अबतक बहुत कम ही हुआ है।
          "गोरे दास व्यापार" शब्द की उत्पति इग्लैंड में महिला फैक्ट्री कार्मिकों का वर्णन करने के दौरान हुई और बाद में इसका प्रयोग यूरोप में वेश्यावृति के लिए गोरी महिलाओ की दासता के लिए किया गया। सयुक्त राज्य में चीनी अप्रवासियों को "येलो पेरिल" पीला खतरा के रूप में देखा जाता था। यूरोप में अरब और ऑटोमन प्राधिकारियों को "गोरे दासो के व्यापारी" के रूप में देखा जाता था जो "गोरी महिलाओ" को वेश्यावृति में धकेल देते थे। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा 20वीं शताब्दी के पूर्वाध में कई सरकारो ने "गोरी दासता" के खिलाफ हस्ताक्षर  किए । इसके परिणामस्वरूप वर्ष 1904 में "गोरे दासो के व्यापार" के दमन के लिए एक अंतराष्ट्रीय समझौते का सूत्रीकरण हुआ जिस पर पेरिस में हस्ताक्षर किए गए और बाद में लगभग 100 सरकारों ने इसका अनुसमर्थन किया। वर्ष 1904 का समझौता गोरी जाति से अन्य पुरुषो तथा लड़को तथा महिलाओ और लड़कियों के लिए मान्य नहीं था इसके अतिरिक्त ,इसमे ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जो विधि प्रवर्तन के विस्तार से संबंधित हो। इन सबका परिणाम यह हुआ कि अवैध व्यापार निरंतर पनपता चला गया।
         इसने एक अन्य संधि अर्थात 1910 का गोरे दास अवैध व्यापार प्रतिबंध अभिसमय (1910 का अभिसमय) को अंगीकृत करने के लिए प्रेरित किया। इस अभिसमय के अनुप्रयोग का क्षेत्र भी 1904 के समझौते की तरह ही था तथा गोरी महिलाओ के अवैध व्यापार और वेश्यावृति और/या यौन शोषण के बीच का संपर्क पहले की तरह बना रहा । इनके बीच केवल एक मुख्य अंतर यह था कि 1910 के अभिसमय में राष्ट्रों से इस कृत्य को समाप्त करने तथा इसके लिए जिम्मेदार लोगो के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने का आग्रह किया गया था।
       

               प्रथम विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ़ नेशन्स ने अवैध व्यापार की समस्या को गंभीरता से लिया और लीग ऑफ़ नेशन्स के अनुबंध के पाठ में अवैध व्यापार सबंधी एक प्रावधान शामिल करने का निर्णय लिया लीग ऑफ़ नेशन्स के तत्वाधान में अवैध व्यापार पर दो और अंतराष्ट्रीय समझोते अंगीकार किए गए। इनमें पहला था महिलाओ एवं बच्चों के अवैध व्यापार दमन संबंधी अंतराष्ट्रीय अभिसमय ,1921 इस अभिसमय ने वर्ष 1920 के अभिसमय द्वारा निर्दिष्ट अवैध व्यापार के वर्णन की पुष्टि की । परिणामतः वेश्यावृत्ति और यौन शोषण को अवैध व्यापार के महत्वपूर्ण योजको के रूप में माना गया हालाँकि इस अभिसमय के शीर्षक से "गोरे दास" शब्दों को हटा दिया गया था। यह एक प्रकार से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा इस तथ्य कि किसी भी वर्ग ,पथ या नृजाति की महिलाएँ, बच्चे अवैध व्यापार के शिकार हो सकते है, की महत्वपूर्ण स्वीकृति थी। इसके अलावा,1921 का अभिसमय पिछले दस्तावेजों की तरह सिर्फ लड़कियों पर ही नही बल्कि लड़कियो और लड़को, दोनों के लिए लागू था। दूसरा दस्तावेज था पूर्ण आयु की महिलाओं के अवैध व्यापार के दमन संबंधी अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय 1933 , इस अभिसमय में भी अवैध व्यापार को उसी भाषा में वर्णित किया गया जैसा कि 1910 और 1921 के अभिसमयो में किया गया था क्योंकि केंद्र-बिंदु एक बार फिर वेश्यावृत्ति और यौन शोषण पर था। इसके अतिरिक्त,1933 के अभिसमय में अवैध व्यापार को अंतर्राष्ट्रीय भूमिका के कायम रखा गया क्योकि इसमें अन्य राष्ट्रों में किए गए कृत्यों को शामिल किया गया था। तथापि, लीग ऑफ़ नेशन्स द्वारा अंगीकृत की गई दो सन्धियां निष्प्रभावी रही क्योकि इनमें वेश्यावृति का घरेलू प्रवृति के मुद्दे के रूप में देखा जाता रहा और इसलिए यह सन्धियां राष्ट्रों को इस प्रथा को समाप्त करने पर मजबूर नहीं कर सकी।

         इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1949 में मानव अवैध व्यापार तथा वेश्यावृत्ति द्वारा शोषण का दमन संबंधी अभिसमय को अंगीकार किया। इस अभिसमय का 49 देशों ने अनुसमर्थन किया था। यह दस्तावेज पिछली सभी संधियों का एक समेकित संस्करण था। इसके बावजूद 1949 अभिसमय कुछ मायनों में पिछली संधियों से भिन्न था। उदाहरणतः इसने अवैध व्यापार और वेश्यावृत्ति के बीच एक सुस्पष्ट संबंध निर्मित किया जिसे शोषण के रूप में देखा जाता है। अभिसमय के शीर्षक में भी यह देखा जा सकता है। इसके आलावा, यह एक ऐसा दस्तावेज है जो लिंग-भेद के संबंध में तटस्थ है और मानता है कि वेश्यावृत्ति के लिए पुरुष और लड़को का भी अवैध व्यापार हो सकता है। इसके अतिरिक्त ,1949  अभिसमय में राष्ट्र के अंदर तथा राष्ट्रीय सीमाओं से बाहर होने वाले /दोनों प्रकार के अवैध व्यापार को शामिल किया गया है।

मानव दुर्व्यापार की परिभाषा

         वर्ष 1990 तक "मानव दुर्व्यापार" को बहुत संकीर्ण रूप में परिभाषित किया जाता था और अक्सर वेश्यावृति शब्द के साथ इसकी अदला-बदली की जाती थी। इसकी सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली परिभाषा थी मुख्यतः विकासशील देशों तथा जिन देशों की अर्थव्यवस्था संक्रमण काल से जूझ रही है के व्यक्तियों का राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार अवैध एवं प्रच्छन्न आवागमन , जिसका अंतिम उद्देश्य नियोक्ता अवैध व्यापारकर्ता तथा आपराधिक संगठनों के साथ-साथ अवैध व्यापार से जुड़ीं अन्य     गतिविधियों जैसे कि बलात् घरेलू श्रम फर्जी विवाह गुप्त रोजगार तथा फर्जी दत्तकग्रहण आदि जैसे काम करने वालों के लिए लाभ अर्जित करने के महिलाओं एवं लड़कियों को देह व्यापार या आर्थिक रूप से दमनकारी एवं शोषणकारी परिस्थियों में ढकेलना (संयुक्त राष्ट्र महासभा 1994) यह परिभाषा अपने प्रयोजन में बहुत ही संकीर्ण पाई गई और विश्व भर की सरकारों सिविल समाज के संगठनों तथा अन्य पणधारियो द्वारा यह महसूस किया गया कि अवैध मानव व्यापार की एक व्यापक परिभाषा विकसित करने की आवश्यकता है जो के बल महिलाओं और लड़कियों तक ही सीमित न हो बल्कि जिसमें पुरुष एवं लड़कों को भी शामिल किया जाए। परदेशीय  संगठित अपराधों की गोचर बढ़ोतरी तथा दासतावत परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्तियो की दुर्दशा संबंधी चिंता के परिणामस्वरूप वर्ष 2000 में विशेषतः दबाने और दंडित करने के लिए एक संयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल का सृजन हुआ इस प्रोटोकॉल ने परदेशीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र अभिसमय 2000 को मजबूती प्रदान की इस प्रोटोकॉल पर पालेरमो इटली में दिसम्बर 2000 में हस्ताक्षर किए गए । यह प्रोटोकॉल राष्ट्रों को बाध्य करता है कि वे अवैध मानव व्यापार को गैर-कानूनी घोषित करें इसमें यौन शोषण के उद्देश्य से किया गया अवैध व्यापार के अलग अन्य प्रकार के अवैध व्यापार के बारे में भी संदर्भ है। यह प्रोटोकॉल यह विर्निदिष्ट करता है कि परिभाषा में बताए गए माध्यमो से अवैध व्यापार के पीड़ित की भावी शोषण के लिए सहमति पूर्णतः असंगत है।
संयुक्त राष्ट्र अवैध व्यापाररोधी प्रोटोकॉल :-  विशेषतः महिलाओं और बच्चों के अवैध मानव व्यापार को रोकने दबाने और दंडित करने संबंधी सयुक्त राष्ट्र प्रोटोकॉल आज अवैध व्यापार की अंतर्राष्ट्रीय रूप से सर्वसम्मत परिभाषा है।  भारत द्वारा भी इस नयाचार पर हस्ताक्षर  किए गए है ।प्रोटोकॉल के अनुच्छेद के अनुसार :-
(क)"व्यक्तियों के अवैध व्यापार" का अर्थ होगा किसी व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति की सम्मति प्राप्त करने के लिए उसे डरा धमका कर या बल प्रयोग करके अथवा जबरदस्ती, अपहरण, धोखाधड़ी , ठगी , शक्ति अथवा संवेदनशीलता की स्थिति के दुरूपयोग या भुगतान अथवा लाभ प्रदान करने अथवा प्राप्त करने के किसी रूप का प्रयोग करते हुए शोषण के प्रयोजनार्थ व्यक्तियो की भर्ती ,परिवहन,हस्तांतरण,आश्रय देना अथवा प्राप्ति शोषण में कम से कम दूसरों से वेश्यावृति करवाते हुए उनका शोषण अथवा यौन शोषण के अन्य रूप , बलात् मजदूरी अथवा सेवाएँ दासता अथवा दासता जैसी क्रियाएँ , ताबेदारी या अंगो को निकलना शामिल है,
(ख) यदि उप-अनुच्छेद(क) में इंगित किसी माध्यम का प्रयोग किया जाता है तो इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (क) में इंगित आशयित शोषण के प्रति व्यक्तियों के अवैध व्यापार के पीड़ित की सम्मति असंगत मानी जाएगी,
(ग) शोषण के प्रयोजन से किसी बच्चे की भर्ती ,परिवहन,हस्तातरण,आश्रय देना या प्राप्ति को "व्यक्तियो का अवैध व्यापार" माना जाएगा चाहे इसमें इस अनुच्छेद के उप-अनुच्छेद (क) में इंगित माध्यमों/साधनों का प्रयोग नहीं किया गया हो",
(घ) "बच्चे" का अर्थ होगा अठारह वर्ष की आयु से कम का व्यक्ति।

         अवैध व्यापार से निपटने के लिए भारत में बनाया गया विशेष कानून "अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956" है। इसमें तीसरे पक्ष जैसे कि वेश्यालय द्वारा वेश्यावृत्ति की सुविधा प्रदान करने, यौन क्रिया के लिए अपना शरीर बेचने वाले किसी व्यक्ति को रखने, उसकी कमाई पर अपना जीवनयापन करने, किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए अधिप्राप्त करने प्रेरित करने अथवा कहीं ले जाने और वेश्यावृत्ति के स्थान पर किसी व्यक्ति को नजरबंद रखने के लिए सजा का प्रावधान किया गया है।
         भारतीय कानून में वेश्यावृत्ति और अवैध व्यापार उस हद तक एक दूसरे से जुड़े हुए है की वाणिज्यिक यौन शोषण के लिए होने वाले अवैध व्यापार से I.T.P.A1956 द्वारा निपटा जाता है। I.T.P.A1956 में किसी व्यक्ति का अवैध व्यापार करने की कोशिश के लिए भी सजा का प्रावधान है। अतः किसी व्यक्ति का भौतिक रूप से अवैध व्यापार किए बिना ही यह कानून लागू हो जाता है। I.T.P.A1956 की धारा 5 में वेश्यावृत्ति के लिए किसी व्यक्ति की अधिप्राप्ति करने उसे रखने और उसे प्रेरित करने के बारे में उल्लेख दिया गया है। इस धारा के अनुसार वेश्यावृत्ति करवाने के लिए किसी व्यक्ति की अधिप्राप्ति करने का प्रयास करना और उसे वेश्यावृत्ति में ढ़केलने का प्रयास करना भी अवैध व्यापार माना जाएगा।
         गोवा बाल अधिनियम 2003 ही एक ऐसी भारतीय सांविधि है जिसमें अवैध मानव व्यापार के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है और यह बाल विशिष्ट भी है। संदर्भित अधिनियम के अनुसार बच्चे के अवैध मानव व्यापार का अर्थ है मौद्रिक अथवा किसी अन्य प्रकार के लाभ के लिए किसी व्यक्ति पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति की सम्मति प्राप्त करने के लिए उसे धमका कर या बल प्रयोग करके अथवा जबरदस्ती,अपहरण,धोखा-धड़ी,ठगी,शक्ति के दुरूपयोग अथवा सवंदनशीलता की स्थिति या भुगतान अथवा लाभ प्रदान करने अथवा प्राप्त करने के किसी रूप का प्रयोग करके,व्यक्तियों की,वैध अथवा अवैध तरीके से,सीमाओं के भीतर अथवा बाहर,अधिप्राप्ति,भर्ती,परिवहन,हस्तांरण,आश्रय देना अथवा प्राप्ति।   मानव दुर्व्यापार की विस्तृत परिभाषा गोवा बाल अधिनियम 2003 में उपलब्ध है। यद्यपि यह बच्चों के अवैध व्यापार पर केंद्रित हैं किंतु परिभाषा व्यापक है। धारा 2(z) के अंतर्गत  “चाइल्ड अवैध व्यापार” का अर्थ है वैधानिक या अवैधानिक तरीकों से देश की सीमा के अंदर या सीमा पार धमकी, बल प्रयोग अथवा किसी बाध्यकारी उपायों द्वारा, अगवा करके, झांसा देकर, धोखा देकर, शक्ति अथवा प्रभावशाली पद का दुरुपयोग कर अथवा धन के लेन-देन या लाभ द्वारा व्यक्ति के अभिभावक की स्वीकृति प्राप्त कर किसी आर्थिक लाभ अथवा किसी अन्य उद्देश्य से व्यक्ति की खरीद-फरोख्त, उसकी नियुक्ति, उसका परिवहन करना, हस्तांतरण करना, उसे अपने अधीन रखना या हासिल करना।
         मानव दुर्व्यापार की परिभाषा I.T.P.A. 1956 की धारा 5 में दिया गया है।इस अधिनियम में वेश्यावृत्ति हेतु मनुष्य को खरीदने अथवा उसे ले जाने का उल्लेख है। इस धारा 5 के अनुसार किसी व्यक्ति को खरीदने का प्रयास या उसे ले जाने का प्रयास अथवा किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए प्रेरित करना भी अवैध व्यापार के अंतर्गत आता है। इस प्रकार ‘अवैध व्यापार’ को विस्तृत क्षेत्र प्राप्त होता है।
          अवैध मानव व्यापार एक प्रक्रिया है और वेश्यावृत्ति इसके परिणामों में से एक है।I.T.P.A1956 की धारा 2(F) में वेश्यावृत्ति को व्यापारीकरण के प्रयोजनार्थ किए जाने वाले यौन शोषण अथवा व्यक्तियों के दुरूपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है और तदनुसार "वेश्या" शब्द की व्याख्या की गई है। अतः यदि किसी व्यक्ति का यौन शोषण अथवा दुरूपयोग किया जा रहा है और कोई दूसरा व्यक्ति उस शोषण /दुरूपयोग से व्यापारिक लाभ प्राप्त कर रहा है तो पहले व्यक्ति को वेश्यावृत्ति करने वाला माना जाएगा।

मानव दुर्व्यापार-आधुनिक दासता

         मानव दुर्व्यापार आधुनिक मानव  दासता  का वह स्वरूप है जिसमें नशीले पदार्थों एवं हथियारों की तस्करी के उपरान्त सर्वाधिक लाभ प्राप्त होता है। यह मानवीय पीड़ाओं से जुड़ा वह व्यापार है, जिससे मानव अधिकारों का सीधा हनन होता है। कदाचित अन्य अपराध इनते जघन्य नहीं होते जितना की मानवीय पीड़ाओं से एवं कष्टों से युक्त यह व्यापार होता है।मानव दुर्व्यवहार को कई प्रकार से परिभाषित किया गया है। यह एक ऐसा व्यापर है, जिसे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक कारणों से वर्जनीय माना गया है। मानव दुर्व्यापार उस आपराधिक प्रथा को इंगित करता है जिसमें मानव का एक वस्तु की तरह शोषण करने लाभ कमाया जाता है। यह शोषण इस तथाकित व्यापार के बाद भी जारी रहता है। मानव दुर्व्यापर में पीड़ित पर नियन्त्रण रखने हेतु पीड़ित को व्यक्तिगत अभिरक्षा में बंदी स्वरुप रखा जाता है, आर्थिक नियन्त्रण में रखा जाता है तथा धमकियों एवं हिंसा का भी सहारा लिया जाता है।इस हथकंडे के द्वारा पीड़ित पर पूरी तरह से नियन्त्रण सुनिश्चित किया जाता है। पीड़ितों को भूखा रखना, अँधेरे कमरे में कैद कर देना, पीटना, यातना देना, सिगरेट से उनके  अंगों  को जलाना, गला घोंटना, चाक़ू मारना, परिजनों की हत्या की धमकी दना या उनका कत्ल कर देना, नशीले पदार्थो का जबरन सेवन करवा का उन्हें इनका आदी बना देना, उनके रूपये- पैसे जब्त कर उनको असहाय बना देना, आदि सामान्य हथकंडे इस व्यापर में अपनाये जाते है। इस प्रकार रोटी, कपड़ा, पैसा अन्य समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पीड़ित इन व्यापारियों पर पूर्णतया निर्भर हो जाते हैं।
         संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार ‘किसी व्यक्ति को डराकर, बलप्रयोग कर या दोषपूर्ण तरीके से भर्ती, परिवहन या शरण में रखने की गतिविधि तस्करी की श्रेणी में आती है’। दुनिया भर में 80 प्रतिशत से ज्यादा मानव तस्करी यौन शोषण के लिए की जाती है, और बाकी बंधुआ मजदूरी के लिए। भारत को एशिया में मानव तस्करी का गढ़ माना जाता है। सरकार के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हर 8 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है। सन् 2011 में लगभग 35,000 बच्चों की गुमशुदगी दर्ज हुई जिसमें से 11,000 से ज्यादा तो सिर्फ पश्चिम बंगाल से थे। इसके अलावा यह माना जाता है कि कुल मामलों में से केवल 30 प्रतिशत मामले ही रिपार्ट किए गए और वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है।
         मानव तस्करी भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। आज तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया जिससे भारत में तस्कर हुए बच्चों का सही आंकड़ा पता चल सके। न्यूयार्क टाइम्स ने भारत में, खासकर झारखंड में मानव तस्करी की बढ़ती समस्या पर रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि छोटी उम्र की लड़कियों को नेपाल से तस्करी कर भारत लाया जाता है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित एक अन्य लेख के अनुसार मानव तस्करी के मामले में कर्नाटक भारत में तीसरे नंबर पर आता है। अन्य दक्षिण भारतीय राज्य भी मानव तस्करी के सक्रिय स्थान हैं। चार दक्षिण भारतीय राज्यों में से प्रत्येक में हर साल ऐसे 300 मामले रिपोर्ट होते हैं। जबकि पश्चिम बंगाल और बिहार में हर साल औसतन ऐसे 100 मामले दर्ज होते हैं। आंकड़ों के अनुसार, मानव तस्करी के आधे से ज्यादा मामले इन्हीं राज्यों से हैं। नशीली दवाओं और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के द्वारा मानव तस्करी पर जारी एक ताजा रिपोर्ट से पता चलता है कि सन् 2012 में तमिलनाडु में मानव तस्करी के 528 मामले थे। यह वास्तव में एक बड़ा आंकड़ा है और पश्चिम बंगाल, जहां यह आंकड़ा 549 था, को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक है। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार चार सालों में कर्नाटक में मानव तस्करी के 1379 मामले रिपोर्ट हुए, तमिलनाडु में 2244 जबकि आंध्र प्रदेश में मानव तस्करी के 2157 मामले थे। हाल ही में बेंगलुरु में 300 बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया गया। फस्र्टपोस्ट के एक लेख के अनुसार दिल्ली भारत में मानव तस्करी का गढ़ है और दुनिया के आधे गुलाम भारत में रहते हैं। दिल्ली घरेलू कामकाज, जबरन शादी और वेश्यावृत्ति के लिए छोटी लड़कियों के अवैध व्यापार का हॉटस्पॉट है।
         बच्चे , खासतौर पर छोटी लड़कियां और युवा महिलाएं जो कि ज्यादातर उत्तरपूर्वी राज्य से होती हैं, उन्हें उनके घरों से लाकर दूरदराज के राज्यों में यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी के लिए बेचा जाता है। ऐजेंट इनके माता पिता को पढ़ाई, बेहतर जिंदगी और पैसों का लालच देकर लाते हैं। ऐजेंट इन्हें स्कूल भेजने के बजाय ईंट के भट्टों पर, कारपेंटर, घरेलू नौकर या भीख मांगने का काम करने के लिए बेच देते हैं। जबकि लड़कियों को यौन शोषण के लिए बेच दिया जाता है। यहां तक कि इन लड़कियों को उन क्षेत्रों में शादी के लिए मजबूर किया जाता है जहां लड़कियों का लिंग अनुपात लड़कों के मुकाबले बहुत कम है। आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों पर मानव तस्करी का खतरा सबसे ज्यादा है। हाल ही में ऐसे कई मामले देखे गए जहां ज्यादातर बच्चे मणिपुर के तामेंगलांग जिले में कुकी जनजाति से थे। इसका कारण आदिवासियों का संघर्ष था जिससे मानव तस्करी को फलने फूलने का मौका मिला। सन् 1992 से 1997 के बीच उत्तरपूर्वी क्षेत्र में कुकी और नागा जनजाति के बीच हुए संघर्ष से कई बच्चे बेघर हो गए। इन बच्चों को ऐजेंट देश के अन्य हिस्सों में ले गए।
संयुक्त राष्ट्र का प्रोटोकॉल जो मानव दुर्व्यापार विशेषतः महिलाओं एवं बच्चों के सन्दर्भ में, इसको रोकने, उन्मूलन करने तथा दंडित करने के सम्बन्ध में है, उसके अनुसार इसकी परिभाषा निम्न प्रकार से दी गई है-
         किसी भी व्यक्ति को भय के द्वारा, बलात प्रयोग द्वारा, अपहरण द्वारा, धोखे से, लालच द्वारा, बहला-फुसलाकर, पद के दुरुपयोग द्वारा व अन्य साधनों से भर्ती करना, ले जाना, स्थानांतरित करना, अभिरक्षा में रखना एवं लाभ प्राप्ति तथा शोषण द्वारा उस पर नियन्त्रण रखना। इस प्रकार के शोषण में इन शोषितों से देहव्यापार करवाना, शारीरिक शोषण करना, जबरन बेगा करवाना अथवा बलात सेवाएं लेना, दासता में रखना अथवा दासवत व्यवहार करना एवं इन शोषितों क अंगों का व्यापार करना, इत्यादि सम्मीलित हैं।
           मानव दुर्व्यापार आधुनिक समय की दासता का एक भयावह प्रतिरूप है। इस दासता में साम, दण्डं, भेद सभी का प्रभावी समावेश होता है। यह शतरंज का एक ऐसा खेल है, जिसमें विभिन्न प्यादे अपनी=अपनी चल से खेल खेलते है, जिनका संचालन बड़े-बड़े प्रभावशाली लोगों द्वारा किया जाता है। देहशोषण का कार्य परम्परागत कोठों से अब अभिजज्य वर्ग के रिहायशी इलाको की ओर पलायन कर रहा है। आधुनिक तकनीकी का इसे बढ़ाने हेतु भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। मनुष्य दुर्व्यापर एक ऐसी  त्रासदी है, जिसकी ओर जागरूक समाज का ध्यान तो आर्कषित होता है, तदुपरान्त चिन्तन एवं मनन भी होता है, परन्तु सफलता की कूंजी हाथ नहीं आती। यह व्यापार का वह विकृत स्वरुप है, जिसके बारे में समग्र एवं प्रमाणिक तथ्य आज भी उपलब्ध का नहीं है। इसके बारे में ज्ञात है, वह है मानवीय समूहों का व्यापक पैमाने पर परिवारों से दूर विस्थापन, उनकी अकल्पनीय शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न भरी कष्टमय जिन्दगी तथा मरणोपरांत इन सबको छुटकारा। इस प्रकार ने केवल मानव की गरिमा ही खंडित होती है, अपितु परिवार के परिवार तबाह हो रहे हैं।